Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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पंचविंशतितमोऽध्यायः गमन करते हैं तो आढक प्रमाण वस्तुओं की बिकी होती है ।। 441
गुरु: शुक्रश्च भौमश्च दक्षिणा: सहिता यदा ।
प्रस्थत्रयं तदा वस्त्रैर्यान्ति मृत्युमुखं प्रजाः ।।451 जब गुरु, शुक्र और मंगल दक्षिण में स्थित हों तब धान्य की बिक्री तीन प्रस्थ की होती है और वस्त्र के लिए प्रजा मृत्यु के मुख में जाती है अर्थात अन्न और वस्त्र का अभाव होता है ।।4511
उत्तरं भजते मार्ग शुक्रपृष्ठं तु चन्द्रमा: ।
महाधान्यानि वधंन्ते कृष्णधान्यानि दक्षिणे ।।46।। जब शुक्र उत्तर मार्ग में आगे हो और चन्द्रमा के पीछे हो तब महाधान्यों की वृद्धि होती है । यदि यही स्थिति दक्षिण मार्ग में हो तो काले रंग के धान्य वृद्धिंगत होते हैं 1146॥
दक्षिणं चन्द्रशृंगं च दातरं देत् ।
महाधान्यं तदा वृद्धि कृष्णधान्यमयोत्तरम् ।।47।। यदि चन्द्रमा का ग दक्षिण की ओर बढ़ता दिखलायी गड़े तो महाधान्य गेहूँ, चना, जो, चावल आदि की वृद्धि होती है तथा उत्तर शृग की वृद्धि होने पर काले रंग के धान्य बढ़ते हैं ।।471
कृत्तिकानां मघानां च रोहिणीनां विशाखयोः ।
उत्तरेण महाधान्यं कृष्ण धान्यञ्च दक्षिणे ॥48॥ कृत्तिका, मघा, रोहिणी और विशाखा के उत्तर होने से महाधान्य और दक्षिण होने से कृष्ण धान्य की वृद्धि होती है 148।।
यस्य देशस्य नक्षत्रं न पीडयते यदा यदा।
तं देशं भिक्षव: स्फीता: संश्रयेपुस्तदा तदा ॥19॥ जिन-जिन देशों के नक्षत्र ग्रहों के द्वारा जब-जब पीड़ित .-घातित न हों तबतब भिक्षओं को उन देशों में प्रसन्न चित्त होकर जाना चाहिए और यहाँ शान्तिपूर्वक विहार करना चाहिए ।। 49॥
धान्यं वस्त्रमिति ज्ञेयं तस्यार्थं च शुभाशुभम् । ग्रहनक्षत्रान् सम्प्रत्य कथितं भद्रबाहुना ॥10॥
1. प्रस्थक्रयं वदा बस्बान्ति मु0 1 2. धान्नं तु मु० ।