Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहुसंहिता
निष्प्रभ और हीन चन्द्रमा दक्षिण मार्ग से अनुराधा में गमन करता है तो वस्त्र महंगे होते हैं |13811
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ज्येष्ठा-मूलौ यदा चन्द्रो दक्षिणं व्रजतेऽप्रभः । तवा सस्यं च वस्त्रं च अर्थश्चापि विनश्यति ॥39 प्रजानामनयो घोरस्तदा जायन्ति तामस । मस्तकयस्थ वस्त्रस्य न यन्ति तां प्रजाम् ॥40॥
जब प्रभार हित चन्द्रमा दक्षिण में ज्येष्ठा और मूल नक्षत्र में आता है, तब धान्य, वस्त्र और अर्थ का विनाश होता है। उक्त प्रकार की चन्द्रमा की स्थिति में प्रजा में अन्न और वस्त्र के लिए हाहाकार हो जाता है तथा वस्त्र खरीदने में प्रजा की हानि भी होती है ।39-40 ।।
मूलं मन्देव सेवन्ते यदा दक्षिणतः शशी । प्रजाति: सर्वधान्यानां आढका तु तदा भवेत् ॥41॥
जब चन्द्रमा दक्षिण से मन्द होता हुआ मूल नक्षत्र का सेवन करता है तब सभी प्रकार के धान्यों की उपज खूब होती है और वर्षा आउक प्रमाण होती 4410
कृत्तिकां रोहिणी चित्रा पुण्या श्लेषा पुनर्वसून् । व्रजति दक्षिणश्चन्द्रो दशप्रस्थं तदा भवेत् ॥142
जब दक्षिण चन्द्रमा कृतिका, रोहिणी, पुष्य, आश्लेषा, पुनर्वसु में गमन करता है, तत्र दश प्रस्थ प्रमाण धान्य की विक्री होती है अर्थात् फसल भी उत्तम होती है ||42||
मघां विशाखां च ज्येष्ठाऽनुराधे मूलमेव च । दक्षिणे व्रजते शुक्रश्चन्द्र े तदाऽऽदकमेव च ॥14॥
शुक्र और चन्द्र के दक्षिण में मघा, विशाखा, ज्येष्ठा, अनुराधा और मूल में गमन करने पर आढक प्रमाण धान्य की बिक्री होती हूं अर्थात् फसल कम होती 114311
कतिको रोहिणी चित्रां विशाखां च मघां यदा । दक्षिणेन ग्रहा यान्ति चन्द्रस्त्वाढकविक्रयः 1441
जब ग्रह दक्षिण से कृत्तिका, रोहिणी, चित्रा, विशाखा और मघा नक्षत्र में
1. शोधार्थ पू० । 2. जायति पु० 1 3. चैव मु