Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
View full book text
________________
चतुर्विशतितमोऽध्यायः
401
चन्द्रनामधारी, चन्द्रभक्त तथा इन्हीं के समान अन्य व्यक्ति पीड़ित भी होते हैं तथा ब्राह्मण, चन्द्रनक्षत्र और चन्द्र राशि वाल, उदीच्य और पांचाल भी पीड़ित होते हैं ।। 12-1311
वर्बराश्च किराताश्च पुलिन्दा मिलास्तथा। मालवा मलया बंगा: कलिंगाः पार्वतास्तथा ॥14॥ 'सूर्यकाश्च सुराः क्षुद्रा: पिशावा वनवासिनः ।
तन्नामधेयास्तद्भक्ता: पीड्यन्ते राहुघातने ॥15॥ गह के पात में बर्बर, किरात, पुलिन्द, मिल, मालच, मलय, वंग, कलिंग, पार्वत, मुर्गक, देव, क्षुद्र, पिशाच, वनबासी, गहु नाभधा, और राहु भात व्यक्ति पीड़ित होते है।।14-1511
यायिनः ख्यातया: सस्यः सोरठाः द्रविडास्तथा। अंगा बंगाः कलिगाश्च सोरसेनाश्च क्षत्रिया: ।।16।। बोराश्चोग्राश्च भोजाश्च यज्ञे चन्द्रश्च साधवः ।
पीड्यन्ते शुक्रधातन संग्रामश्चाकुलो भवेत् ।।17।। शुक्र घात ---सुद्ध से यायो, यणम्बी. शाल्व, विक, अंग, बंग, कलिंग, सौरसेन अत्रिय, बीर, उग्र, भोग, माधु, चन्द्रवंशी पीड़ित होते हैं तथा युद्ध और न्यायलिता प्राप्त होती है ।। 16-1711
श्वेत: श्वेतं ग्रहं यत्र हन्यात् सुवर्चसा यदा।
नागनणा मिथो दो विप्राणां तु भयं भवेत् ॥18॥ जब श्वेत ग्रहवेत ग्रह को अपनी शक्ति द्वारा घातित करे तब नागरिकों में परम्पर भेद एवं ब्राह्मणों को भय होना है ।। 18।।
लोहितो लोहितं हन्यात यदा ग्रहसमागमे ।
नागराणां" यो मेद: क्षत्रियाणां' भवं भवेत् ॥19॥ ग्रहयुद्ध में यदि लोहिल ग्रह लोहित ग्रह का प्रात करे तो नागरिकों में परस्पर भेद एवं मित्रों को भय होता है ।।1911
पीतः धोतं यदा हयाद् ग्रहं ग्रहसमागमे । वैश्यानां नागराणां च मिथो भेदं तदाऽदिशेत् ॥20॥
पंकन मु. 12 मन्दिा बगिल था । 3. गृ मा मु.। 4. बाइ ममानों पु. । 5. नागणां 7 निविणे . 16. शधिग्र [णा ग" | 7. नामां तु निदि णेन मु. ।