Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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विशतितमोऽध्यायः
कृष्णप्रभो यदा सोमो दशम्यां परिविष्यते । पश्चाद् रात्रं तदा राहुः सोमं गृह्णात्यसंशय: 11 28 ||
यदि दशमी तिथि को कृष्णवर्ण की प्रभा वाले चन्द्रमा का परिवेष दिखलाई पड़े तो पूर्णमासी को चन्द्रमा राहु द्वारा निस्सन्देह आधीरात कश्चात् श्रण किया जाता है |12811
परिवेषते
1
अष्टम्यां तु यदा सोमं श्वेता तदा परिघं वे राहुविमुञ्चति न संशयः ॥29॥
अष्टमी तिथि को श्वेतवर्ण की आभा का चन्द्रमा का परिविप दिखलाई पड़े राहु परिष को छोड़ता है, इसमें गन्देह नहीं है 1129।।
तो
कनकाभो पदाsध्म्यां परिवेषेण चन्द्रमाः । अर्धा तदा कृत्वा राहुरुद्गिरते पुनः ॥30॥
353
यदि अष्टमी तिथि को स्वर्ण के समान कान्ति बाले चन्द्रमा का परिवेष दिखलाई पड़े तो पूर्णमासी को राहु उसका अर्धग्राम करके छोड़ देता है |130 परिवेषोदयोऽष्टम्यां चन्द्रमा रुधिरप्रभः ।
सर्वप्रास तथा कृत्वा 'राहुस्तञ्च विमुञ्चति ॥31॥
अष्टमी तिथि को परिवेष में ही चन्द्रमा का उदय हो और चन्द्रमा रुधिर के समान कान्तिवाला हो को राहु पूर्णमासी तिथि को चन्द्रमा का सर्वग्रास करके छोड़ता है 113111
2 कृष्णपीता यदा कोटिर्दक्षिणा स्याद्ग्रहः सितः । पीतो यदष्टम्यां कोटी तदा श्वेतं ग्रहं वदेत् ॥1321
जब अष्टमी तिथि को चन्द्र की दक्षिणकोटि कृष्णगोत होती है तो ग्रहण श्वेत होता है तथा पीली कोटिग होने पर भी श्वेत ग्रहण होता है 113211 दक्षिणा मेचकाभा तु कपोतग्रह्मादिशेत् ।
कपोतमेचकाभा तु कोटी ग्रहमुपानयेत् ॥33॥
यदि चन्द्रमा की दक्षिण कोटि दक्षिण शृंग मंचक आभा वाला हो तो कपोत रंग का ग्रहण होता है और कपोतमेचक आभा होंगे पर ग्रहण का भी वैसा रंग होता है ॥33॥
| द्र म० 12 म
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