Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
View full book text
________________
विंशतितमोऽध्यायः
351
शुक्लपक्षे द्वितीयायां सोमशृगं 'तदा प्रभम् ।
स्फुटिताग्रं द्विधा वाऽपि विन्द्याद् राहोस्तदाऽऽगमम् ॥15॥ जव शुक्ल पक्ष की द्वितीया में चन्द्रग प्रभावान् हो अथवा उसग के टूटकार दो हिस्मे दिखलाई पड़ते हों, तब गहु का आगमन समझना चाहिए ।।1।।
चन्द्रस्य चोत्तरा कोटी द्वे शृंगे दृश्यते यदा।
धूम्रो विवर्णो ज्वलितस्तदा राहोघंवागमः ॥16॥ जब चन्द्रमा की उत्तर कोटि में दो शृग दिखलाई पड़ें और चन्द्र धात्र, विकृत वर्ण और ज्वलित खिलाई पडे. उग समय निश्चय में गह का आगम जानना चाहिए | till
उदयास्तमने भूयो यदा यचोदयो रवौ।
इन्द्रो वा यदि दृश्येत तदा ज्ञेयो ग्रहागमः।।।।। जब उदय या अस्तकाल में पुन: पुन: गुर्य और चन्द्रमा दिन्टा पड़े तब ग्रहागम ग़मन्नना चाहिए 11 17।।
कबन्धा-परिघा मेघा धुद रक्ताद जनः !
उदगच्छमाने दृश्यन्ते सूर्ये राहोस्तदाऽऽराम: ॥18॥ जब मेघ कबन्ध, परिघ के आनार के हों तथा सूर्य में ध्या , धूम और रक्त वर्ण की इनियमान दिखलाई पड़े तब राहु का आगमन समाना चाहिए ।।।8।।
मार्गवान् महिलाकारः शकटस्थो यदा शशी।
उद्गच्छन् दृश्यतेऽष्टम्यां तदा यो ग्रहागमः ॥19॥ जव अष्टमी को चन्द्रमा मागी, महिलाकार, रोहिणी नक्षत्र में फटा-टूटा-सा दिखलाई पड़े तब ग्रहागम गमझना चाहिए 11 1911
सिंह-मेषोष्ट्र-संकाश: परिवेश यदा शशी।
अष्टभ्यां शुअलपक्षस्य तदा ज्ञेयो प्रहागमः ॥2011 जब शुक्ल पक्ष की अष्टमी को चन्द्रमा का परिवेग सिंह, मंग और ऊँट नं. समान मालूम पड़े, तब ग्रहागग समझना चाहिए ॥2011
श्वेतके सरसङ्काश रक्त-पीतोऽष्टमो यदा। यदा चन्द्र: प्रदृश्येत तदा याद् ग्रहागमः ॥21॥
1. यद। शुभम् म । 2. गिग मु० । 3. कधी ग।