Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहुसंहिता जब प्रतिपदा तिथि को चन्द्रमा प्रकृति रो विवृत हो और भिन्न वर्ण का हो तो ग्रहागम जानना चाहिए ।।8।।
लिखेद् रश्मिभिर्भूयो वा यदाऽऽच्छायेत भास्करः ।
पूर्वकाले च सन्ध्यायां ज्ञेयो राहोस्तदाऽऽगमः ॥9॥ यदि सूर्य किरणों के द्वारा स्पर्श करे अथवा पूर्वकाल की सन्ध्या में सूर्य के द्वारा आच्छादन हो तो राहु का आगम समझना चाहिए ॥9॥
पशु-ज्याल-पिशाचाना सर्वतोऽपरदक्षिणम् ।
तुल्यान्यभ्राणि वातोल्के यदा राहोस्तदाऽऽगमः ।।101 राहु के आगमन होने पर पशु, सर्प, पिशाच आदि दक्षिण से चारों ओर दिखलाई पड़त हैं तथा रामान मेध, वायु और उल्कापात भी होता है ॥10॥
सन्ध्यायां तु यदा शीतं अपरेसासनं ततः ।
सूर्यः पाण्डुश्चला भूमिस्तदा ज्ञेयो ग्रहामम: ।111॥ जय राध्या में शोत हो. अन्य ममय में उष्णता हो, सूर्य पाण्डवणं हो, भूमि नल हो तो ग्रहागम समझना चाहिए ।।11।।
सरांसि सरितो वक्षा वल्ल्यो गुल्म-लतावनम् ।
सौम्यभ्रांश्चवले वृक्षा राहोशंयस्त दाऽऽगम: ।12।। तालाब, नबी, वृक्ष, लता, वन, सौम्य कान्तिवाल हों और वृक्ष चंचल हों तो राहु ना आगम समझना चाहिए ।।।2।।
छादयेच्चन्द्र-सूर्यो च यदा मेघा सिताम्बरा ।
सन्ध्यायां च तदा ज्ञेयं राहोरागमनं ध्रुवम् ॥13॥ जब सन्ध्याकाल में आकाश में मेघ चन्द्र और सूर्य को आच्छादित कर दें, तव राह का आगमन समलना चाहिए 1113।।
एतान्येव तु लिङ्गानि भयं कुर्य रपणि ।
वर्षासु वर्षदानि स्युभद्रबाहुवचो यया ।।4।। वत चिह्न अपर्व-पूर्णिमा और अमावास्या से भिन्न नाल में भय उत्पन्न करते हैं। वर्षा में ऋतु वर्षा करने वाले होते है, ऐसा भद्रबाहु स्वामी का वचन है ||40
!. शोधायचंचले मु०12. गिताम्बरे ४० ।