Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाइसंहिता
जितने दिनों तक ये दीखते हैं, उतने ही महीनों तक और जितने महीनों तक दीखें उतने ही वर्षों तक इनका फल मिलता है। जब ये दीखें तो उसके तीन पक्ष आगे फल देते हैं । जिन केतुओं की शिखा उल्का से ताडित हो रही हो वे केतु हण, अफगान, चीन और चोल से अन्यत्र देशों में श्रेयस्कर होते हैं । जो केतु शुक्ल, स्निग्धतनु, हस्व, प्रसन्न, थोड़े समय ही दीखने वाला सीधा हो और जिसके उदित होने से दृष्टि हुई हो वह शुभ फलदायी होता है।
चार प्रकार के भूकम्प ऐन्द्र, वाण, वायव्य और आग्नेय होते हैं, इनका कारण भी राहु और केतु का विशेष योग ही है । जब राहु ने सातवें मंगल, मंगल से पांचवें बुध और बुध से चौथे चन्द्रमा होता है. उस समय भूकम्प होता है ।
स्वाती,चित्रा, उत्तरा माल्गुनी, हस्त, मृगशिरा, अश्विनी, पुनर्यमु.-इन नक्षत्रों में अग्नि केतु या संवतं तु दिखलायी पड़े तो भूकम्प होता है। पुण्य, कृत्तिया, विशाखा, पूर्वाभाद्रपद, भरणी, पूर्वाफाल्गुनी और मगा इन नक्षत्रों का आग्नेय माडल बहलाता है । अब कोलक या आग्नेय केनु इस मान में दिखनायी देन है तो भूकम्प होने का योग जाता है। .ग. ल. भि, औदाजा, पद्म और रविरश्मि बन्नु जब प्रका गमान होकर किसी भी मध्य रात्रि में उदित होते हैं, तो उसके तीन मप्ताह में भयंार भूकम्प पूर्व देशों में तथा हलमा भूकम्प पश्चिम क देशों में आता है। बमाकनु और कपालकनु यदि प्रतिपदा तिथि को रात्रि का प्रथम प्रहर में दिनुलायी पड़े तो भी भूकम्प आता है । भुकम्पों के प्रधान निमित्त केतुओं का उदय है। यों तो ग्रहयोग से गणित द्वारा भवाम्म का समय निकाला जाता है, किन्तु भर्चगाधारण जब भी नोतुओं के उदय के निरीक्षण मात्र में, आकाशदर्शन से ही, भकमा का रिज्ञान कर सकता है।
द्वाविंशतितमोऽध्यायः
सर्वग्रहेश्वर: सूर्य: प्रवासमुदयं प्रति ।
तस्य चारं प्रवक्ष्यामि तन्निबोधत तत्त्वतः ।। सभी ग्रहों का स्वामी सूर्य है। इसके प्रवाम, उज्य और चार का वर्णन करता हूँ, इन्हें यथार्थ समझना चाहिए ॥1॥