Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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विशतितमोऽध्यायः
पूर्वं दिशि तु यदा हत्वा राहुः निष्क्रमते शशी । रूक्षो वा होनरश्मिर्वा पूर्वी राजा विनश्यति ॥ 1530
जब राहु पूर्व दिशा में चन्द्रमा का नंदन कर निकले और चन्द्रमा रूक्ष तथा हीन किरण मालूम पड़े तो पूर्व देश के राजा का विनाश होता है |1531 दक्षिणदिने गर्भ दाक्षिणात्यांश्च पीडयेत् । उत्तराभेदने चैव नाविकांश्च जिघांसति ॥54॥
दक्षिण दिशा में गर्भ के न होने से दाक्षिणात्य - दक्षिण निवासियों को कष्ट और उत्तर रा का होने से नाविको का घात होता है |54|| निश्चल: सुप्रभः कान्तो यदा निति चन्द्रमाः । राक्षां विजय-लाभाय तदा ज्ञेयः शिवशंकरः ॥5॥ निम्बल और सुन्दर कान्ति बालाचन्द्रमा जब से निकलता है तो राजाओं को जगनाम और राष्ट्र में सर्वशान्ति होती है ।15511 एतान्येव तु लिगानि चन्द्र ज्ञेयानि धीमता । कृष्णपक्ष यदा चन्द्रः शुभ वा यदि वाऽशुभः ||56|
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उपर्युक्त चिह्नों को चन्द्रमा में अवगत कर बुद्धिमान् व्यक्तियों को शुभाशुभ जानना चाहिए। जब चन्द्रमा कृष्ण पक्ष में शुभ या अशुभ होता है तो उसके अनुसार फल घटित होता है ॥5॥
उत्पाताश्व निमित्तानि शकुतं लक्षणानि च । पर्वकाले यदा सन्ति तदा राहो वागमः 1157
जब पूर्व में उत्पात, निमित, अकुत और लक्षण घटित होते हैं, तन लय से राहु का आगमन राहु द्वारा ग्रहण होता है 15711
रक्तो राहुः शशी सूर्यो हन्युः क्षत्रात् सितो द्विजान् । पोतों वैश्यान् कृष्णः शूद्रान् द्विवर्णास्तु जिघांसति ॥58||
जन लाल रंग के राहु, सूर्य और चन्द्रमा हो तो क्षत्रियों का हनन, श्वेत वर्ण के होने पर द्विजों का इनन, पीतवर्ष के होने पर वैश्यों का हनन और कृष्ण वर्ण के होने पर शूद्र और वर्णसरों का हनन होता है |58 ।।
चन्द्रमा: पीडितो हन्ति नक्षत्रं यस्य यद्यतः । रूक्षः पापनिमित्तश्च विकृतश्च विनिर्गतः ॥59
1. सूर्य । 2. ग