Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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एकविंशतितमोऽध्यायः
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जिस प्रकार सर्प के द्वारा काटा गया व्यक्ति मन्त्र और औषधि से स्वास्थ्य लाभ करता है, उसकी चिकित्सा मन्त्र और औषधि है, उसी प्रकार दुष्ट केतु की चिकित्सा दान-पूजा है । तात्पर्य यह है कि अशुभ केतु पापोदय से प्रकट होता है, पाप शान्त होने पर अशुभ केतु स्वयमेव शान्त हो जाता है । गृहस्थ के लिए पाप शान्ति का उपाय जप-तप के अलावा दान-पूजन ही है 115711 य: केतु चारमखिल यथावत्'
प पुवा रात्र। स केतुदग्धांस्त्यजते हि देशान् प्राप्नोति यूजां च नरेन्द्रमूलात्।।58।।
जो बुद्धिमान श्रमण-मुनि समस्त केतु चार को यथावत् अध्ययन करता है 'वह केतु के द्वारा पीड़ित प्रदेशों का त्यागकर अन्यत्र गगन करता है, और राजाओं मे पूजा प्रतिष्ठा प्राप्त करता है ।।58!!
इति नग्रंन्थे भद्रबाहुके निषित एकविंशतितमोध्याय: ।। 211
विवेचन-- केतुओं के भव और स्वरूप---केतु मूनवः तीन प्रकार हैंदिव्य, अन्तरिक्ष और भौम । वज, शस्त्र, गह, यक्षा आश्व और हस्ती आदि में जो केतुरूप दर्शन होता है. वह अन्तरिक्ष मेनु नक्षत्रों में जो दिखलायी देता है उस दिन्यकेतु हैं और इन दोनों के अतिरिक्त अन्य क्ष भीमकत है ! तुओं की कुल संख्या एक हजार या एक सौ एक है । कानु का फलादेश, उम्मकः उदय, अस्त, अवस्थान, सत और धूम्रता आदि के द्वारा अवगत किया जाता है। पातु जिराने दिन तक दिखनायो देता है, उतने माग तक उमः न मा पनिपा होता है । जो गानु निमंच, चिकना, सरल, सविर और क्लवर्ग होकर उदिा होता है, वह मुभिक्ष और सुखदायक होता है । इसके विपरीत रूपवान का शुभदायक नहीं होते, परन्तु उनका नाम धूमकेनु होता है। विशेषत: इन्द्रधनुष के समान अनेकः रंगवाले अथवा दो या तीन चोटी वाले केनु अगन्त अशुभकारक होता है। हार, मणि या सुवर्ण के समान रूप धारण करने वाले और चोटीदार कन यदि पूर्व या पश्चिम में दिखायी दें तो सूर्य से उत्पन्न कहलाते है और इनकी संख्या पच्चीस है। तोता, अग्नि, दुपहरिया का फूल, लाख या रक्त के समान जो केनु अग्निकोण में दिखलायी दें, तो व अग्नि से उतान्न हुए माने जाते हैं और इनकी संख्या पच्चीस है। पच्चीस बंतु टेढ़ी चोटी वाले, स्खे और कृष्ण वर्ण होकर दक्षिण में दिखलाई पड़ते हैं, ये यम से उत्पन्न हुए मान गये हैं। इनके उदय होने में पारी पड़ती है। दर्पण के समान मो न आकार वान, शिया रहित, किरण युनत और राजन जल के समान काक्षि वाल जो वाईम के ईशान दिशा में दिखलानी पड़तव श्री
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