Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहुसंहिता महापिपीलिकाराशिविस्फुरन्ती विपद्यते ।
उह्यानुत्तिष्ठते यत्र तत्र विन्द्यान्महद्भयम् ॥3॥ जहाँ अत्यधिक चींटियों का समूह विस्फुरित- काँपते हुए मृत्यु को प्राप्त हो और उह्य-क्षत-विक्षत-घायल होकर स्थित हो, वहीं महान् भय होता है ।। 53||
श्वश्वपिपीलिकावन्दं निम्नवं विसर्पति ।
वर्ष तन्त्र विजानीयाभद्रबाहुवचो यथा ॥540 जहाँ चीटियाँ रुप बदल कर--पंख बाली होकर नीचे से ऊपर को जाती हैं, वहां वर्षा होती है, ऐसा भद्रबाहु स्वामी का वचन है ।।5411
राजोपकरणे भग्ने चालते पतितेऽपि वा।
क्रव्यादसेवने चैव राजपीडां समादिभेत् ।।5511 ___राजा क उपकरण-छत्र, चमर मुगुट आदि के भग्न होने, चलित होने या गिरने गे तथा मांसाहारी के द्वारा सेवा करने में राजा पीड़ा को प्राप्त होता है।।550
वाजिवारणयानानां मरणे छेदने दुते ।
परचक्रागमात् विन्धादुत्पातजो जितेन्द्रियः ॥56॥ घोडा, हाथी आदि सवारियों के अचानक मरण, घायल या छेदन होने से जितेन्द्रिय उत्पात शास्त्र के जानने वाले को परशासन का आगमन जानना चाहिए 15611
क्षत्रिया: पुष्पितेश्वत्ध ब्राह्मणाश्चाप्युदुम्बरे।
वैश्या: प्लक्षज्य पीड्यन्ते न्यग्रोधे शूद्रवस्यवः ।।57॥ असमय में पीपल के पेड़ के पुगित होने से ब्राह्मणों को उम्बर के वृक्ष के पुषित हनि ग क्षत्रियों को, पाकर वृक्ष के गुपित होने से वंश्यों को और वट वृक्ष के पुषित होने से शुदों को पीड़ा होती है 1157।।
इन्द्रायुधं निशिश्वेतं विप्रान् रक्तं च क्षत्रियान् ।
निहन्ति पीतकं वैश्यान् कृष्णं शूद्रभयंकरम् ।।58।। गधि में इन्द्रधनुप यदि श्वेत रंग का हो तो ब्राह्मणों को, लाल रंग का हो तो क्षत्रियों को, नीले रंग का हो तो वैश्यों को और काले रंग का हो तो शुद्रों को भयदायक होता है ।। 5811