Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहुसंहिता
बालकों को कष्ट, साधारण वर्षा और फसल भी अच्छी होती है । तुलाराशि में गुरु के उदय होने से काश्मीरी चन्दन, फल-पुष्प एवं सुगन्धित पदार्थ महँगे होते हैं वृश्चिक राशि में गुरु के उदय होने से दुर्भिक्ष, धन-विनाश, पीड़ा, एव अल्प वर्षा होती है ।
धनु राशि और मकर राशि में गुरु का उदय होने से रोग, उत्तम धान्य, अच्छी वर्षा एवं द्विजातियों को कष्ट होता है। कुम्भ राशि में गुरु के उदय होने से अतिवृष्टि, अनाज का भाव महेंगा एवं मीन राशि में गुरु के उदय होने से युद्ध, संघर्ष और अशान्ति होती है | कार्तिक मास में गुरु के उदय होने से थोड़ी वर्षा, रोग, पीड़ा, मार्गशीर्ष में उदय होने से सुभिक्ष, उत्तम वर्षा पीप में उदय होने से नोरोगता और धान्य की प्राप्तिः माघ-फाल्गुन में उदय होने से खण्डवृष्टि, चैत्र में उदय होने से विचित्र स्थिति, वैशाख - ज्येष्ठ में उदय होने से वर्षा का निरोध; आपाढ़ में उदय हो तो आपस में मतभेद, अन्न का भाव तेज श्रावण में उदय हो सो आरोग्य, सुख-शान्ति, वर्षा भाद्रपद मास में उदय होने से धान्यनाश एवं आश्विन में उदय होने में सभी प्रकार से सुख की प्राप्ति होती है।
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गुरु के अस्त का विचार - मेप में गुरु अस्त हो तो थोड़ी वर्षा; बिहार, बंगाल, आसाम में सुभिक्ष, राजस्थान, पंजाब में दुष्काल बृष में अस्त हो तो दुर्भिक्ष दक्षिण भारत में अच्छी फसल, उत्तर भारत में खण्डवृष्टि, मिथुन में अस्त हो तो घृत, तेल, लवण आदि पदार्थ महेंगे, महामारी के कारण सामूहिक मृत्यु, अल्प वृष्टि, कर्क में हो तो सुभिक्ष, कुशल, कल्याण, क्षेम; सिंह में अस्त हो तो संघर्ष, राजनीतिक उलट-फेर धन का नाश कन्या में अस्त हो तो क्षेम, शुद्ध. सुभिक्ष, आरोग्य, तुला में पीड़ा, द्विजों को विशेष कष्ट, धान्य महंगा; वृश्चिक में अस्त हो तो नेत्ररोग, धनहानि, आरोग्य, शस्त्रभय धनु राशि में अस्त हो तो भय, आतंक, संगादि मकर राशि में अस्त हो तो उड़द, तिल, मूंग आदि धान्य महेंगे: कुम्भ में अस्त हो तो प्रजा को कष्ट, गर्भवती नारियों को रोग एवं मीन राशि मे अस्त हो तो सुभिक्ष, साधारण वर्षा, धान्य भाव सस्ता होता है ।
गुरु का क्रूर ग्रहों के साथ अस्त या उदय होना अशुभ होता है । शुभ ग्रहों के साथ अस्त या उदय होने से गुरु का शुभ फल प्राप्त होता है । गुरु के साथ शान्ति और मंगल के रहने से प्रायः सभी वस्तुओं की कमी होती है और भाव भी उनके होते हैं। जब गुरु के साथ शनि की दृष्टि गुरु पर रहती है, वर्षा कम होती है और फमल भी अल्प परिमाण में उपजती है ।
सब