Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहुसंहिता
नक्षत्राणि चरेत्पञ्च पुरस्तादुत्थितो बुधः ।
ततश्चास्तमित: षष्ठे सप्तमे दृश्यते परः ।।711 सम्मुख उदय होकर बुध पाँच नक्षत्र प्रमाण गमन करता है, छठे नक्षत्र पर अस्त होता है और सातवे पर पुनः दिखलाई पड़ता है ।।7।।
उदित: पृष्ठत: सोम्यश्चत्वारि चरति ध्रुवम् ।
पञ्चमेऽस्तमितः षष्ठे दृश्यते पूर्वतः पुनः ॥॥ पृष्ठतः उदिन होकर बुध चार नक्षत्र प्रमाण गमन करता है, पांचवें नक्षत्र पर अस्त होता है और छठे पर गुनः दिखलाई पड़ता है ।।811
चत्वारि षट् तथाऽष्टौ च कुर्यादस्तमनोदयौ ।
सौम्यायां तु विमिश्रायां संक्षिप्तायां यथाक्रमम् ॥9॥ मोम्या, विभिक्षा और संक्षिप्ता गति में क्रमश: चार, छ: और आठ नक्षत्रों पर अस्त और उपप को बुध प्राप्त होता है ।।५।।
नक्षत्रमस्य चिह्नानि गतिभिस्लिसाभयंदा ।
पूर्वाभि: पूर्णसस्यानां तदा सम्पत्तिरुत्तमा ॥10॥ उस तीनों गलियों में जब बुध नक्षत्रों को पुनः ग्रहण करता है तो पूर्ण रूप से । धान्य की उत्पत्ति होती है और उनम सम्पत्ति रहता है ।। 10।।
बुधो ग्रदोत्तरे मार्ग सुवर्णः पूजितस्तदा।
मध्यमे मध्यमो ज्ञेया जघन्यो दक्षिणे पथि ।।1।। पूर्वोतर मार्ग में बुध अन्द्र वर्ण बालों द्वारा पूजित होता है अर्थात उत्तम फलदायक होता है। गध्य में मध्य और दक्षिण मार्ग में जघन्य माना जाता है ।।1।।
वसु कुर्थादतिस्थलो ताम्र: शस्त्रप्रकोपनः ।
"अतश्चारुणवर्णश्च बुधः सर्वत्र पूजितः ॥12॥ अनिल बुध धन वृद्धि मारता है, ताम्रवणं का बुध शास्त्र काप करता है, गुम और अम्ण वर्ण का बुध सर्वत्र पूजित–उत्तम होता है 111211
पृष्ठत: पुरलम्भाय पुरस्तादर्थवृद्धथे।
स्निग्धो रूक्षो बुधो ज्ञेय: सदा सर्वत्रगो बुधः ॥13॥ बुध का पीछे रहना नगर-प्राप्ति निग, सामने रहना अर्थ-वृद्धि के लिए और और बुध गदा सवंर गएन । रने वाला होता है ।।।3।।
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