Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहुसंहिता
स्थापित किये जाते हैं । अनाज अन्ना नान्न होता है, वर्षा भी अच्छी होती है । कलिंग-उड़ीसा, विदेह - मिथिला, काशी, विदर्भ देश के निवासियों को सभी प्रकार के लाभ होते हैं। मरुभूमि राजस्थान में सुभिक्ष रहता है, वर्षा भी अच्छी होती है । फसल उत्तम होने के साथ मवेशियों को कष्ट होता है । मथुरा और शूरसेन देशवासियों का आर्थिक विकास होता है। व्यापारी वर्ग को गाधारण लाभ होता है । सोना और चाँदी के सट्टे में हानि उठानी पड़ती है । जूट का भाव बहुत ऊंचा चढ़ जाता है, जिससे व्यापारियों को हानि होती है।
मृगशिरा, आर्द्रा, मघा और आश्लेषा नक्षत्र में बुध के विचरण करने को मिथा गति कहते हैं । यह गति 30 दिनों तक रहती है । इस गति का फल मध्यम है। देश के सभी राज्यों और प्रदेशों में सामान्य वर्ग, उत्तम फराल, रस पदार्थों को कमी, धातुओं के मूल्य में वृद्धि एवं उच्च वर्ग के व्यक्तियों को ग़भी प्रकार से मुख प्राप्त होता है । बुध की मिथा गति मध्यप्रदेश एवं आसपाम के निवासियों के लिए अधिक शुभ होती है। उक्त राज्यों में उत्तम वृष्टि होती है और फसल भी अच्छी ही होती है । पुण्य, पुनवंगु, पूर्वा फाल्गुनी और उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में संक्षिप्त गति होती है। यह गति 22 दिनों तक रहती है। इस गति का फल भी मध्यम ही है पर विशपता यह है कि इस गति के होने पर घी, तेल पदार्थों का भाव महंगा होता है। देश के दक्षिण भाग के निवासियों को साधारण काट होता है। दक्षिण में अन्न की फसल अच्छी होती है। उत्तर में गुड़, चीनी और अन्य मधुर पदार्थों की उत्पत्ति अच्छी होती है । कोयला, लोहा, अभ्रक, ताँबा, सीसा भूमि से अधिक निकलता है। देश का आर्थिक विकास होता है । जिस दिन से बुध उक्त गति आरम्भ व.रता है, उमी दिन स लकर जिस दिन यह गति समाप्त होती है, उस दिन तक देश में मुभिक्ष रहता है । देश के सभी राज्यों में अन्न और वस्त्र की कमी नहीं होती। आसाम में बाढ़ आ जाने से फसल नष्ट होती है। बिहार के वे प्रदेश भी कष्ट उठाते हैं, जो नदियों के तटवर्ती है। उत्तर प्रदेश में सब प्रकार से शान्ति व्याप्त रहती है । पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद, ज्येष्ठा, अश्विनी और रेवती नक्षत्र में बुध की गति तीक्ष्ण कहलाती है। यह गति 18 दिन की होती है । इस गति के होने में वर्षा का अभाव, दुष्काल, महामारी, अग्निप्रकोप और शस्त्रप्रकोप होता है । मुल, पूर्वापाढा और उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में बुध के विचरण करने से वध की योगान्तिका गति कहलाती है। यह गति 9 दिन तक रहती है। इस गति का फल अत्यन्त अनिष्टकार है। देश में रोग, शोक, झगड़े आदि के साथ वर्षा का भी अभाव रहता है। श्रावण मास में साधारण वर्षी होती है, इसके पश्चात् अन्य महीनों में वर्षा नहीं होती है । जब तक बुध इस गति में रहता है, तब तक अधिक लोगों की मृत्यु होती है । आकस्मिक दुर्घटनाएँ अधिक घटती हैं । श्रवण, चित्रा, धनिष्ठा और शतभिषा नक्षत्र में शुक्र के रहने से उसकी