Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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एकोनविंशतितमोऽध्याय:
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घोर गति कहलाती है । यह गति 15 दिन तक रहती है । जब बुध इस गति में गमन करता है, उस समय देश में अत्याचार, अनीति, चोरी आदि का व्यापक रूप गे प्रचार होता है । उत्तर प्रदेश, पंजाब, बंगाल और दिल्ली राज्य के लिए यह गति अत्यधिक अनिष्ट करने वाली है । वध के इम गति में विचरण करने से
आर्थिक क्षति, किसी बड़े नेता की मृत्यू, देश में अर्थ-संकट, अन्नाभाव आदि फल घटित होते हैं । हस्त, अनुराधा या ज्येष्ठा नक्षत्र में बुध के विचरण करने से पापा गति होती है । इस गति के दिनों की संख्या 11 है । इग़ गति में बुध के रहने से अनेक प्रकार की हानियाँ उठानी पड़ती हैं । देश में राजनीतिक उलट-फेर होते हैं। बिहार, आसाम और मध्यप्रदेश के मन्त्रिमण्डल में परिवर्तन होता है।
देवल के मत से फलादेश—देवल ने वध की चार गतियाँ बतलाई हैं - ऋज्वी, वक्रा, अतिवका और विकला। ये गतियाँ क्रमश: 30, 24, 12 और 6 दिन तक रहती हैं । ज्वी गति प्रजा के लिए हितकारी, वक्रा में शस्त्रभय, अतिवना में धन का नाश, और विकला में भय तथा रोग होते हैं। पौष, आषाढ़, श्रावण, वैशाख और माघ में बध दिग्वलाई दे तो संसार को भय, अनेक प्रकार के उलात एवं धन-जन की हानि होती है। यदि उपत मासों में बुध अस्त हो तो शुभ होता है। आश्विन या कार्तिक मास में बुध दिखलाई दे तो शस्त्र, रोग, अग्नि, जल और क्षुधा का भय होता है। पश्चिम दिशा में बुध का उदय अधिक शुभ फल करता है तथा पूरे देश को शुभकारक होता है । स्वर्ण, हरित या सस्यक मणि के समान रंग वाला बुध निर्मल और स्वच्छ होकर उदिन होता है, तो सभी राज्यों और देशों के लिए मंगल करने वाला होता है।
एकोनविंशतितमोऽध्यायः
चारं प्रवास वर्ण व दोस्ति 'काष्ठांति फलम्।
वकानुवनामानि लोहितस्य निबोधत ॥1॥ मंगल के चार, प्रवास, वर्ण, दीप्ति, काष्ठ, गति, फन, वन और अनुवक आदि का विवेचन किया जाता है।!।
1. कार्ट गति म ।