Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहुसंहिता
पड़े तो शिल्पकला एवं चित्रकला का विनाश होता है । चित्र, मूर्ति, कुशल मूर्तिकार और चित्रकारों का बन्धन और विनाश होता है ! अर्थात् उक्त प्रकार की स्थिति में ललित कलाओं और ललित कलालों का निर्माताओं का विनाश एवं मरण होता है ।।19-2011
भित्त्वा पदोत्तरां वीथों दारुकाशोऽवलोकयेत् । सोमस्य चोत्तरं शृंगं लिखेद् भद्रपदां वधेत् ॥21॥ शिल्पिनां दारुजीवीना तदा षापमासिको भयः ।
अकर्मसिद्धिः कलहो मित्र भेव: पराजयः ॥22॥ यदि बुध उत्तरा वीथि का भेदन कर काष्ठ-तृण का अवलोकन करे एवं चन्द्रमा के उत्तर शृंग का स्पर्श करे तथा पूर्वा भाद्रपद का वेध करे तो काष्ठजीवी शिल्पियों को छः महीने में भय होता है । अकार्य की सिद्धि होती है । कलह, मित्रभेद और पराजय आदि फल घटित होते हैं 1121-221॥
पीतो यदोत्तरां बीथीं गुरुं भित्वा प्रलीयते। तदा चतुष्पदं गर्भ कोशधान्यं बुधो वधेत् ॥23॥ वैश्यश्च शिल्पिनश्चापि गर्भ मासञ्च सारथिः ।
सो नयेद्भजते मासं भाद्रबाहुवचो यथा 12410 पीत वर्ण का बुध उत्तरा वीथि में बृहस्पति का भेदन कर अस्त हो जाय तो चौपाये, गर्भ, खजाना, धान्य आदि का विनाश करता है। उक्त प्रकार की बुध की स्थिति से वैश्य और गिल्पियों को दामण भय होता है । यह भय एक महीने तक रहता है, ऐसा भद्रवाह स्वामी का वचन है ।। 23-2411
विभ्राजमानो रक्तो वा बुधो दृश्येत कश्चन ।
नागराणां स्थिराणां च दीक्षितानां च तद्भयम् ।।25।। यदि नभी शोभित होने वाला रक्त वर्ण का बुध दिखलाई पड़े तो नागरिक, स्थिर और दीक्षित--साधु-मुनियों को भय होता है ।।25।।
कृत्तिकास्वग्निदो रक्तो रोहिण्यां स क्षयंकरः।। सौम्ये रौद्रे तथाऽऽवित्ये पुष्ये सर्प बुधः स्मृतः ॥26॥ पितदैवं तथाऽऽश्लेषां कलु यदि "दृश्यते । पितृ स्तान् विहंगांश्च सस्यं स भजते मयः ॥27॥
1. वयः मु० । 2. शिल्पिनां चापि भर्ष भयनि दाराम मु० । 3. सेवते मु० ।