Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहुसंहिता
के बृहस्पति में आश्विन वर्ष होता है । इसमें घी, तेल सस्ते होते हैं । मार्गशीर्ष और पौष में धान्य का संग्रह करना उचित है। मार्गशीर्ष से लेकर चैत्र तक पांचों महीनों में लाभ होता है । विग्रह-लड़ाई और संघर्ष देश में होने का योग अवगत करना चाहिए। रस संग्रह करने वालों को अधिक लाभ होता है । वृश्चिक राशि का बृहस्पति होने पर कात्तिक संवत्सर होता है। इसमें खण्डवृष्टि, धान्य की फसल अल्प होती है। घरों में परस्पर वैमनस्य आठ महीनों तक होता है। 'भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक महीनों में महंगाई हो जाती है। सोना, चांदी, कांसा, तांबा, तिल, घी, श्रीफल, कपास, नमक, श्वेत वस्त्र महंगे बिकते हैं । देश के विभिन्न प्रदशा में संघर्ष होते हैं, स्त्रियों को नाना प्रकार के कष्ट होते हैं । धनु राशि के बृहस्पति में मार्गशीर्ष संवत्सर होता है। इसमें वर्षा अधिक होती है। सोना, चांदो, अनाज, कपास, लोहा, कांसा आदि सभी पदार्थ सस्त होते हैं। भागशापं स ज्यष्ठ तयाँ धो कुछ महंगा रहता है। चौपायों से अधिक लाभ होता है, इनका मूल्य अधिक बढ़ जाता है। मकर क गुरु में पाप सवत्सर होता है, इसमें
पामाव आरदुमक्ष होता है। उत्तर और पाश्चम में खुण्ड वृष्टि होती है तथा पूर्व और दक्षिण म दुभिक्ष | धान्य का भाव महंगा रहता है । कुम्म क गुरु में माघ सबत्सर हाता है। इसम सुभिक्ष, पर्याप्त वर्षा, धामिक प्रचार, धातु और अनाज सस्त होत है। माव-फाल्गुन में पदार्थ सस्त रहते हैं । वैशाख में वस्तुओं के भाव कुछ तज हा जात है। मीन क गुरू में फाल्गुन सवत्सर होता है। इसमें अनेक प्रकार के रोगा का प्रसार, साधारण वर्षा, सुभिक्ष, गेहूँ, चीनी, तिल, तेल और गुड़ का भाव तेज होता है। पौष मास में कष्ट होता है। फारगन और चैत्र के महीने में बीमारियां फैलती हैं। दक्षिण भारत और राजस्थान के लिए यह वर्ष मध्यम है। पूर्व के लिए वर्ष उत्तम है, पश्चिम के प्रदेशों के लिए वर्ष साधारण है।
वृहस्पति के वक्री होने का विचार–भप राशि का बृहस्पति वक्री होकर मीन राशि का हो जाय तो आषाड़, श्रावण में गाय, महिप, गधे और ऊंट तज हो जाते हैं। चन्दन, सुगन्धित तेल तथा अन्य सुगन्धित वस्तुएं महंगी होती हैं । वृष राशि का गुरु पांच महीने वक्री हो जाय तो माय-बैल आदि चौपाने, वर्तन आदि तेज होत हैं। सभी प्रकार क धान्य का संग्रह करना उचित है । मवेशी में अधिक लाभ होता है। मिथुन राशि का गुरु वक्री हो तो आठ महीने तक चौपाये नज रहते हैं 1 मार्गशीर्ष आदि महीनों में सुभिक्ष, सब लोग स्वस्थ लेकिन उत्तर प्रदेश
और पंजाब में दुमाल की स्थिति आती है । कर्क राशि का गुरु यदि वक्री हो तो घोर दुभिक्ष, गृहयुद्ध, जनता में संघर्ष, राज्यों की सीमा में परिवर्तन तथा घी, तेल, चीनी, कपास के व्यापार में लाभ एवं धान्य भाव भी महेंगा होता है। सिंह राशि के गावकी होने से गुभिक्ष, आरोग्य और सब लोगों में प्रसन्नता होती है। धाल्य क मंग्रहों में भी लाभ होता है। कन्या राशि के गुरु के वक्री होने से अल्प लाभ,