Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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चतुर्दशोऽध्यायः
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मज्यते नश्यते तत्तु कम्पते शीर्यते जलम् ।
चतुर्मासं परं राजा म्रियते भज्यते तदा ।।591 पदि इन्द्रधनुष भग्न होता हो, नष्ट होता हो, काँपता हो और जल की वर्षा करता हो तो राजा चार महीने के उपरान्त मृत्यु को प्राप्त होता है, या आघात । को प्राप्त होला है 1159।।
"पितामहर्षय: सर्वे सोमं च क्षतसंयुतम् ।
त्रैमासिकं विजानीयादुत्पातं ब्राह्मणेषु वै ॥6॥ पिता, महर्षि तथा चन्द्रमा यदि क्षत-विक्षत दिखलाई पड़े तो निश्चय से — ब्राह्मणों में त्रैमासिक उत्पात होता है ।।6।।
रूक्षा विवर्णा विकृता यदा सन्ध्या भयानका ।
मारौं कुर्युः सुविकृतां पक्षत्रिपक्षकं भयम् ।।6।। यदि सन्ध्या रुक्ष, विकृत और विवश हो तो नाना प्रकार के विकार और मरण को करने बाली होती है तथा एक पक्ष या तीन पक्ष में भय की प्राप्ति भी होती है ।।61।।
यदि वैश्रवणे कश्चिदुत्पातं समुदीरयेत् ।
राजनश्च सचिवाश्च पञ्चमासान् स पोडयेत् ॥62॥ यदि गमन समय में ... राजा को युद्ध के लिए प्रस्थान करते समय कोई उत्पात दिखलाई पड़े तो गाजा और मन्त्री को गांच महीने तक कष्ट होता है 11620
यदोत्पातोऽयमेकश्चिद दश्यते विकत: क्वचित् ।
तदा व्याधिश्च मारी च चतुर्मासात् परं भवेत् ॥63॥ यदि कहीं कोई विकृत उत्थान दिग्वलाई पड़े तो इस उत्पात-दर्शन के चार ____ महीने के उपरान्त व्याधि और मरण होता है ।। 63।।
यदा चन्द्र वरुणे बोत्यात: कश्चिदुदीर्यते । मारक: सिन्धु-सौवीर-सुराष्ट्र-वत्सभूमिषु ॥6411 भोजनेषु' भयं विन्ध्रात् पूर्वे च म्रियते नृपः । पञ्चमासात् परं विन्धान भयं घोरभुपस्थितम् ॥65॥
1.4 4 वाघमंग म् 1 2. म् म । 3 44 बरवणे चपन कश्चिदुपात: समुदायत । 4. भाग च म ।