Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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चतुर्दशोऽध्यायः
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लिलेत सोमः 'शृंगेन भौमं शुक्र गुरूं यथा।
शनैश्न जातिं पद्धयानि तदा दिशेत् ॥6॥ चन्द्रशृग के द्वारा पंगल, शुक्र और गुण या स्पर्ण हो तथा शनैश्चर आधीन किया जा रहा हो तो छ प्रकार के भय होन है 1961
यदा बृहस्पत्तिः शुक्र भिदथ विशेषतः ।
पुरोहितास्तदाऽमात्याः प्राप्नुवन्ति महद्भयम् ।।97॥ यदि बृहस्पति-- गुरु, शुक्र का शेदन करे तो विशेष रूप से पुरोहित और मन्त्री महान भा को प्राप्त होते हैं 1197 ।।
ग्रहा: परस्परं यत्र भिन्दन्ति प्रविन्ति वा।
तत्र शस्त्रवाणिज्यानि बिन्धादविपर्ययम् ।।8।। यदि ग्रह कार में भेदन करें अथवा प्रवेग को प्राप्त हों तो शस्त्र का अर्थविपर्यय --विपरीत हो जाता है अर्थात् वहीं गुम होते है ।19811
स्वतो गृहमन्यं श्वेतं प्रविशंत लिवित् तदा।
ब्राह्मणानां मिथो भेद मिथः पीडां विनिदिशेत् ।।99॥ यदि श्वेत वणं का सह–चन्द्रमा, शुरु ग्येत वर्णनों ग्रहों का स्पर्श और प्रवेश करे तो ब्राह्मणों में परमार मतभेद होना है तथा परम्पर में पीड़ा का भी प्राप्त होते हैं 100
एवं शेषेषु वणेषु स्ववणश्चारयेद् ग्रहः ।
वर्णतः स्वभयानि स्युस्तद्युतान्युपलक्षयेत् ११६ ११ इमी प्रकार बत या कराह रक्त वर्ण ग्रहों का पर्ण और प्रवेश नारें तो क्षत्रियों को, पीन वणं . ग्रा. पीत वर्ण के ग्रहों का और प्रवेश करे तो वैश्यों को एवं कृष्ण वर्ण , यह कृष्ण वर्ण के ग्रहों का पर्श ओर प्रवेश करें तो शुद्रों को 'अय, गोडा या उनमें परमार मनभेद होता है। ज्योतिषशास्त्र में मुष को रक्तवर्ण, चन्द्रमा को श्वेतवर्ण, मंगल ग्रनवर्ण, बुध को श्यामवर्ग, गुरू को पीनवर्ण, शुक्र को ध्यान गौर वर्ण, शनिको कागवणं, राह को कृष्णावणं और कनु को कृष्णवर्ण माना गया है || i 1000
श्वेतो ग्रहो यदा पीतो रक्तकृष्णोऽथवा भवेत् । सवर्ण विजयं कुर्थात् यथास्वं वर्णसंकरम् ॥101॥
1. गिणाम्
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