Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
View full book text
________________
262
भद्रबाहुसहिता
का नाक के पास बाला भाग फड़कने से भय, मध्य का हिस्सा फड़कने से चोरी या , धनहानि और कान के पास बाला हिस्सा फड़कने से कष्ट, मृत्यु अपनी या किसी आत्मीय की अयदा अन्य किसी भी प्रकार की अशुभ मचना समझना चाहिए। साधारणतया स्त्री की वायीं ओम का फड़कना और पुरुष की दाहिनी आँख का फड़कना शुभ माना जाता है, पर विशेष जानने के लिए दोनों ही नेत्रों के पृथकपृथक भागों के फड़कने का विचार करना चाहिए।
पैर, जंघा, घुटने, गुदा और कमर पर छिपकली गिरने से बुरा फल होता है, अन्यत्र प्रायः शुभ फल होता है। पुरुषों के बार्य अंग का जो फल बतलाया गया है, उसे स्त्रियों के दाहिने भाग तथा पुरुषों के दाहिने अंग के फलादेश को स्त्रियों के बायें भाग का फल जानना चाहिए । छिपकली के गिरने से और गिरगिट के ऊपर चढ़ने मे बराबर ही फल होता है । संक्षेप में बतलाया गया है कि-- यदि पतति च पल्ली दक्षिणांग नराणां, स्वजनजनविरोधो वामभागे च लाभम् । उदरशिरसि कण्ठे पृष्ठभागे र मृत्यु; धारचरणहृदिस्थे सर्वशीस्यं मनुष्यः ।। __ अर्थात् दाहिने अंग पर पल्ली पतन हो तो आत्मीय लोगों में विरोध होता है और वास अंग पर पल्ली के गिरने से लाभ होता है। पेट, शिर, कण्ठ, पीठ पर पल्ली के गिरने में मत्य तथा हाथ, पांव और छाती पर गिरने से सब सुख प्राप्त होते हैं।
गणित द्वारा पल्ली पतन के प्रश्न का उत्तर
'तिथिप्रहरसंयुक्ता तारकावारमिश्रिता। नभिस्तु हद् भानं शेष ज्ञेयं फलाफलम् ॥ धातं नाणं तथा लाभं कल्याणं जयमंगले।
उत्साहहानी मृत्युञ्च छिक्का पलनी च जाम्युनः ।।' अर्थात् जिस दिन जिरा प्रहर में पल्लीपतन हुआ हो-छिपकली गिरी हो उस दिन की तिथि शुक्ल प्रतिपदा में गिनकर लेना, प्रातःकाल से प्रहर और अश्विनी में पता के नक्षत्र तक लेना अर्थात् तिथि संख्या, नक्षत्र संख्या और प्रहर संख्या को योग कर देना, इम योग में नौ का भाग देने पर एक. शेप में घात, दो में नाश, तीन में लाभ, चार में कल्याण, पाँच में जय, छ: में मंगल, सात में उत्साह, आठ में हानि और नौ शष में मृत्यु फल कहना चाहिए । उदाहरण-- रामलाल के कार चैत्र कृष्ण द्वादशी को अनुराधा नक्षत्र में दिन में 10 बजे छिपकली गिरी है। इसका फल गणित द्वारा विचार करना है, अतः तिथि संख्या 27 (फाल्गन शुस्ला ! में मंत्र कृष्ण द्वादशी तक), नक्षत्र संम्ट्या 17 (अश्विनी से अनुराधा तक), प्रहर संख्या 2 (प्रात.काल सूर्योदय से तीन-तीन घंटे का एक-एक