Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहसंहिता
समर्घता-वस्तुओं के भाव में समता और प्रजा का विकास होता है। उक्त नक्षत्रों का शनि मनोहर वर्ण का होन ग और अधिक शान्ति देता है तथा पूर्वीय प्रदेशों के निवासियों को अर्थलाभ होता है ! पश्चिम प्रदेशों के नागरिकों के लिए उक्त नक्षत्रों का शनि भयावह होता है । चोर, डाकुओं और गुण्डों का उपद्रव बढ़ जाता है । आश्लेगा, शतभिषा और ज्येष्ठा नक्षत्रों में स्थित शनि सुभिक्ष, सुमंगल और समयानुकूल न करता है । इन नक्षत्रों में शनि के स्थित रहने रा वर्षा प्रचुर परिमाण में नहीं होती। समस्त देश में अल्प ही वृष्टि होती है । मूल नक्षत्र में शनि के विचरण करने से क्षुधामय, शत्रु भय, अनावृष्टि, परस्पर संघर्ष, मतभेद, राजनीतिका उलट-फेर, नेताओं में झगड़ा, व्यापारी वर्ग को कष्ट एवं स्त्रियों को व्याधि होती है।
अश्विनी नक्षत्र में शनि के विचरण करने मु अश्व, अश्वारोही, कवि, वैद्य और मन्त्रियों को हानि उठानी पड़ती है। उक्त नक्षत्र का शनि बंगाल में सुभिश्न, शान्ति, धन-धान्य की वृद्धि, जनता में उत्साह, विद्या का प्रचार एवं व्यापार की उत्पत्ति, करने वाला है 1 आसाम और बिहार के लिए साधारणत: सुखदायी, अल्प वृष्टिवारक एवं नेताओं में मतभेद उत्पन्न करन वाला, उत्तर प्रदेश, मायण और महाराष्ट्र को गिा गुशिलका बाढ़ के कारण जनता को साधारण कष्ट, आथिक विकास एवं धान्य की उत्पत्ति का सुचक है 1 मद्रास, कोचीन, राजस्थान, हिमाचल, दिल्ली, पंजाब और विन्ध्य प्रदेश के लिए साधारण ष्टिकारक, सुभिक्षोतमादक और आर्थिक विकास करने वाला है। अवशष प्रदेश के लिए सुखोत्यादया और मुभिक्षकारक है। अश्विनी नक्षत्र के शनि में इंग्लैण्ड, अमेरिका और रूस में आन्तरिक अशान्ति रहती है । जापान में अधिक 'भूकम्प आते हैं तथा अनाज की कमी रहती है । वाद्य पदार्थों का अभाव मुदूर पश्चिम के राष्ट्रों में रहता है । भरणी नक्षण का पनि विशेष रूप से जल-यात्रा करने वालों को हानि पहुंचाता है। नर्तक, गाने-बजाने वाले एवं छोटी-छोटी नावों द्वारा आजीविका करने वालों को कष्ट देता है 1 कृतिका नक्षत्र का शनि अग्नि से आजीविका करने वाल, क्षत्रिय, मंनिय और प्रशासक वर्ग के लिए अनिष्टकर होता है।
रोहिणी नक्षण में रहने वाला यानि उत्तरप्रदेश और पंजाब के व्यक्तियों को काट देता है। पूर्व और दक्षिण के निवासियों के लिए गुख-शान्ति देता है । जनता में ब्रान्ति उत्पन्न करता है। समस्त देश में नयी-नयी बातों की गाँग की जाती है। शिक्षा और व्यवसाय के क्षेत्र में उन्नति होती है। मृगशिर नक्षत्र में पानिक विचरण करने से याजत्र, यजमान, धमात्मा और शान्तिप्रिय लोगों को कष्ट होता है । इस नक्षत्र पर शनि के रहने से रोगों को उत्पत्ति अधिक होती है तथा अग्निभय और शस्यभय व गवर बना रहता है । आर्द्रा नक्षत्र पर शनि के रहने रातली, धोबी, रंगरज और चारों को अत्यन्त कष्ट होता है, देश के सभी भागों में