Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहसंहिता
उत्तम नहीं होता है । अवशेष सभी श्रेणी के व्यक्तियों के लिए उत्तम होता है । मूल नमान का पनि काशी, अयोध्या और आगरा में अशान्ति उत्पन्न करता है । यहाँ संघर्ष होते हैं तथा उक्त नगरों में अग्नि का भी भय रहता है। अक्शेष सभी प्रदेशों के लिए उत्तम होता है । पूर्वाषाढा में शनि के रहने से बिहार, बंगाल, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, मध्यभारत के लिए भयकारक, अल्प वर्षा सूचक और व्यापार में हानि पहुंचाने वाला होता है । उत्त राषाढा नक्षत्र में शनि विचरण करता हो तो यवन, शावर, भिल्ल आदि पहाड़ी जातियों को हानि करता है । इन जातियों में अनेक प्रकार के रोग फैल जाते हैं तथा आगरा में भी संघर्ष होता है । श्रवण नक्षत्र में विचरण करने से शनि राज्यपाल, राष्ट्रपति, मुख्यमन्त्री एवं प्रधानमन्त्री के लिए हानिकारक होता है। देश के अन्य यगों के व्यक्तियों के लिए कल्याण करने वाला होता है।
धनिष्ठा नक्षत्र में विचरण करने वाला शनि धनियों, श्रीमन्तों और ऊँचे दर्जे न. व्यापारियों के लिए हानि पहुंचाता है। इन लोगों को व्यापार में घाटा होता है । गनभिषा और पूर्वाभाद्रपद में शनि के रहने में पण्य जीवी व्यक्तियों को विघ्न होता है। उक्त नक्षत्र के शनि में बड़े-बड़े व्यापारियों को अच्छा लाभ होता है। उत्तगभापद में शनि का रहने में पागल का नाग, निक्ष, जनता को नष्ट, शम्भय, अग्निभय एवं देश के सभी प्रदेशों में अशान्ति होती है । रेवती नक्षत्र में मनि के विचरण करने में फमला अभाव, अलावा, रोगों की भरमार, जनता में विद्वेष-ईया एवं नागरिकों में अमाहयोग की भावना उत्पन्न होती है । राजाओं में विरोध उत्पन्न होता है । ____ गुम के विशाखा नक्षत्र में रहने पर नि यदि कृत्तिका नक्षत्र में स्थित हो तो प्रजा को अत्यन्त पीड़ा दुर्भिक्ष और नागरिकों में भय पैदा होता है । अनेक वर्ण का शनि देश को कष्ट देता है, देश ने विकास में विधन करता है । श्वेत वर्ण का शनि होने पर भारत के सभी प्रदेशों में शान्ति, धन-धान्य की वृद्धि एवं देश का सर्वांगीण विकास होता है।