Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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सप्तदशोऽध्यायः
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विवेचन- मास के अनुसार गुरु के राशि-परिवर्तन का फल -- यदि कात्तिक मास में गुरु राशि परिवर्तन करे तो गरयो को ऋष्ट, शस्त्र-अस्त्रों का अधिक निर्माण, अग्निभय, साधारण वर्षा, समर्घता, मालिकों को कष्ट, द्रविड़ देशवासियों को शान्ति, सौराष्ट्र के निवासियों को साधारण कन्ट, उत्तरप्रदेश वासियों को सुख एवं धान्य की उत्पत्ति अच्छी होती है। अगहन में गुरु के राशि परिवर्तन होन से अल्प वर्षा, कृषि की हानि, परस्पर में युद्ध, आन्तरिक संघर्ष, देश के विकास में अनेक रुकावट एवं नाना प्रकार के संकट आते हैं। बिहार, बंगाल, आसाम आदि पूर्वीय प्रदेशों में वर्षा अच्छी होती है तथा इन प्रदेशो में कृषि भी अच्छी होती है। उत्तर प्रदेश, पंजाब और सिन्ध में वर्षा की कमी रहती है, फसल भी अच्छी नहीं होती है । इन प्रदेशों में अनेक प्रकार के सांघर्ष हात है, जनता में अनेक प्रकार की पार्टियां तैयार होती है तथा इन प्रदेशों में महामारी भी फैलती हैं। चचक का प्रकोप उत्त प्रदेग, मध्यप्रदेश, और राजस्थान में होता है। पौष मास में बृहस्पति के राशि परिवर्तन से गुभिक्ष, आवश्यकतानुसार अच्छी वर्षा, धर्म की वृद्धि, क्षेम, आरोग्य और गन्नु का विकास होता है। भारतवर्ष के सभी राज्यों क लिए यह बृहस्पति उत्तम माना जाता है । पहाड़ी प्रदेशों की उन्नति और अधिक रूप में होती है । माघ मास में गुरु के राशि परिवर्तन से सभी प्राणियों को सुख-शांति, मुभिक्ष, आरोग्य और समयानुकूल प्रथेष्ट वर्षा एवं सभी प्रकार से कृषि का विकास होता है । ऊसर भूमि में भी अनाज उत्पन्न होता है। पशुओं का विकास और उन्नति होती है । फाल्गुन मास में गुरु के राशि-परिवर्तन होन म स्त्रियों को भय, विधवाओं की संख्या की वृद्धि, वर्मा का अभाव अथवा अला बर्षा, ईति-भीति, फसल की मी एवं हैजे या प्रकोप व्यापक रूप से होता है। बंगाल, राजस्थान
और गुजरात में अकाल की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। चैट में गुरु का राशिपरिवर्तन होने में नारियों को मन्तान-प्राप्ति, गुभिक्ष, उत्तम वर्गा, नाना व्याधियों की आशंकाय संगार में राजनीति परिवर्तन हात है। जापान, जगन, अमेरिका, इंगलैण्ड, रूस, चीन, श्याम, बर्मा, आस्ट्रेलिया, मलाया आदि म मनमुटाव होता है 1 राष्ट्रा म भदनीति कार्य करती है। गुटबन्दी का कार्य आरम्भ हो जाने से परिवर्तन व चिह्न मग दृष्टिगोचर होने लगते है । वैशाख मास में गुरु का राशिपरिवर्तन हान सं धर्म की वृद्धि, भिक्ष, अच्छी वो, व्यापारिक उन्नति, देश का आर्थिक विकास, दुष्ट-गुण्डे-बोर आदि का दमन, सज्जनों को पुरस्कार एवं वाद्यान्न का भाव ना होता है । घी, मुड़, धीनी आदि का भाव भी सस्ता रहता है। अत प्रकार के गुझ में फलों की फसल में कमी आती है। समयानुकल यथेट वर्षा होती है। जूट, तम्बाकू और लोह का उत्पादन अधिक होता है । विदेशी से भारत का मैत्री सम्बन्ध बढ़ता है तथा सभी मैत्री सम्बन्धों में आग बढ़ना चाहत है। ज्यादा में गुरु के सशि-परिवर्तन होच स धर्मात्माजना को कष्ट,