Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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सप्तदशोऽध्यायः
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दो-दो नक्षत्रों का ममन जो पहले कहा गया है, उन्हीं के अनुसार छः प्रकार के भयों का परिज्ञान करना चाहिए 12411
इमानि यानि बीजानि विशेषेण विचक्षणः ।
व्याधयो मूतिघातेन हृद्रोगो हृदये 'महत् ।25।। जो बीजभूत नक्षत्र हैं, उनके द्वारा मनीषियों को फलादेश ज्ञात करना चाहिए। यदि बृहस्पति के मुत्ति नक्षत्रों-कृत्तिका और रोहिणी -का घात हो तो व्याधियाँ-नाना प्रकार की बीमारियाँ और हृदय नक्षत्र का घात हो तो हृदय रोग उत्पन्न होते हैं ।।250
पुष्ये हते हतं पुष्पं फलानि कुसुमानि च। आग्नेया मूषका: सर्पा दाघश्च शलभा: शुकाः ॥26॥ ईनमश्च पहाभानो जाले न नहा स्मृताः ।
स्वचक्रमोतयश्चैव परचक्र निरम्बु च ।।271 पुष्य नक्षत्र का घात होने पर पुष्प, फल और पल्लवों का विनाश, अग्नि, मूषक-चूहे, सर्प, जलन, शलभ (टिड्डी), शुक का उपद्रव, इति–महामारी, धान्यघात, स्वशासन में मित्रता, और परशासन में जलाभाब आदि फल घटित होते है ।।26-270
अत्यम्बु च विशाखायां सोमे संवत्सरे विदुः ।
शेष संवत्सरे ज्ञेयं शारदं तत्र नेतरम् ।।28।। अमहन या सौम्य नाम के संवत्सर में जब विशाखा नक्षत्र पर बृहस्पति गमन करता है, तो अत्यधिक जल की वर्षा होती है ! शेष संवत्सरों में केवल पोप संवत्सर में ही अल्प जल की वर्षा समझनी चाहिए, अन्य वर्षों में वह भी नहीं 11 2811
माघमल्पोदकं विन्द्यात् फाल्गुने दुर्भगा: स्त्रियः ।
चैत्रं चित्रं विजानीयात् सस्यं तोयं सरीसपा: ।।29॥ बृहस्पति जिस मास के जिस नक्षय में उदय हो, उम नक्षत्र के अनुसार ही महीने के नाम के समान वर्ष का भी नाम होता है। माघ नाम के वर्ष में अला वर्पा होती है, फाल्गुन नाम के वर्ष में स्त्रियों का दुर्भाग्य बढ़ता है। चत नाम के वर्ष में धान्य, जल की वर्षा विचित्र रूप में होती है तथा सरीसृपों की वृद्धि होती है 11291
1.हले मु० ।