Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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पंचदशोऽध्यायः
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भस्म के समान रूक्ष वर्ण का शुक्र देश को सभी प्रकार की विपत्ति देने वाला
होता है। स्वच्छ, स्निग्ध, मधुर और गुन्दर कान्सिवाला शुक्र नुभिक्ष, शान्ति, __नीरोगता आदि फलों को देने शला है। शुक्र का अस्त रविवार को हो तथा उदय पानिवार को हो तो देश में बिनाश, संघर्ष, चेचक बा विशेष प्रकोप, महामारी, घान्य का भाव भंगा, जनता में क्षोभ, आनंक एवं घृत और मुड़ का भाव सस्ता होता है। ___शुक्रवार को शुक्र अस्त होकर शनिवार को उदय को प्राप्त हो तो गभिक्ष, शान्ति, आथित विकाग, पशु सम्पत्ति का विचारा, समय पर वर्मा, कलाकौशल की यदि एवं क्षेत्र के गहीने में वीभारी पड़ती है। श्रावण में मंगलवार को शुभास्त हो और इगी महीने में शनिवार को उदय हो तो जनता में परस्पर संघर्ष, मेताओं में मतभेद, फसल की क्षति, खून-खराया, जहां-तहां उपद्रव एवं वर्षा भी साधारण होती है। भाद्रपद मास में गुरुवार को शुक्र अस्त हो और गुरुवार को ही शुक्र का उदय आश्विन मास में हो तो जनता में संक्रामक रोग पहनते हैं।
आश्विन मास में शक्र वृधवार को अस्त होकर मोमवार को उदय को प्राप्त हो तो सुभिक्ष, धन-धान्य की वृद्धि, जनता में साहस यन्त-कारखानों की वृद्धि होती है। बिहार, बंगाल, आसाम, उत्कल आदि पूर्वीय प्रदेशों में वर्षा यथेष्ट होती है। दक्षिण भारत में फगल अनाली नहीं होती, खेती में अनेक प्रकार के रोग लग जाते हैं, जिससे उत्तम फसल नहीं होती । कानिक माम में शुक्रास्त होकर पीप में उदय को प्राप्त हो तो जनता को साधारण कष्ट, माघ में कठोर जाड़ा तथा पाला पड़ने के कारण फसल नष्ट हो जाती है । गार्गशीर्ष में शुक्र का अस्त होन। अशुभ सूचक
____ पाप गाग में शुक्रास्त होना अच्छा होता है, धन-धान्य की समृद्धि होती है । माघ मास में शुक्र अस्त होकर फाल्ान में उदय को प्राप्त हो तो फमल आगामी वर्ष अच्छी नहीं होती । फाल्गुन और चैत्र माग में शक या अरत होना मध्यम है। वैशाख में शुक्रास्त होकर आपाढ़ में उदय हो तो दुभिक्ष, महामारी एवं सारे देश में उथल-पुथल रहती है । राजनीतियः उलट-फेर 'मी होते रहते है । ज्येष्ट और आपाढ़ के शुक्र ना अस्त होना अनाज की कमी वा सूचक है ।