Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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चतुर्दशोऽध्यायः
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कोण में उत्पात दिखलाई पड़े तो तीन पक्ष-डेढ़ महीने में अग्नि का भय होता है।11731
रोहिण्यां तु यदा घोषो निर्वातो यदि दश्यते ।
सर्वाः प्रजा: प्रपोड्यन्ते पण्मासात्परतस्तदा ।।17411 यदि रोहिणी नक्षत्र में विना बायु के शब्द सुनाई पड़े तो इस उत्पात के छ: महीने पश्चात् सारी प्रजा को पीड़ा होती है !! 17411
उल्कापात: सनिर्धातः सवातो यदि दृश्यते।
रोहिण्यां पञ्चमासेन कुर्याद धोरं महद्भयम् ।।175।। ___ यदि रोहिणी नक्षत्र में घर्पण और वायु महित उन्मापात हो तो पांच महीने में घोर भय होता है ॥1751
एवं नक्षत्र शेषेषु यद्युत्पाता: पृथग्विधाः ।
देवतार्जनलीनं च प्रसाध्यं भिक्षुणा सदा ॥176॥ इसी प्रधार अन्य नक्षत्रों में भिन्न-भिन्न प्रकार मा उत्पात दिशुदाई गड़े तो भिक्षुओं को देवपूजा द्वारा उग उस्मात के अनिष्ट पल को दूर वारना चाहिए। अर्थात् उत्पान की शान्ति पूजा-पाट वारा करनी चाहिए।।। 7611 . वाहनं महिषों पुत्रं बलं सेनापति पुरम् ।
पुरोहितं नृपं वित्तं घ्नन्त्युत्पाताः समुच्छ्रिताः ॥177॥ उत्पन्न हुए विभिन्न प्रकार का उत्पात मबाग, ना, रानी, पुत्र, मेनापति, पुरोहित, अमात्य, राजा और धन आदि का विनाश करता है ।। 17710
एषामन्यतरं हित्वा निर्वति यान्ति ते सदा ।
परं द्वादशरात्रेण सद्यो नायिता पिता॥178॥ जो व्यक्ति इन उत्पातों में से किसी भी उत्पात की अवहेलना करते हैं, वे बारह गलियों में ही कष्ट को प्राप्त करने हैं तथा उगयो युटुम्ब मरिना या अन्य कोई मृत्यु को प्राप्त होता है।। 1781
यत्रोत्पाताः न दृश्यन्ते यथाकालमुपस्थिताः ।
तेन सञ्चयदोषेण राजा देशश्च नश्यति ।।17911 जहाँ यथा ममय उपस्थित हुए उत्पातों को नहीं देखा जाता है, वहाँ उत्पाता के द्वारा मंचित दोर से राजा और दंन दोनों का नाश होता है ॥179।।
नमन गर ।