Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
View full book text
________________
चतुर्दशोऽध्यायः
243
यदि जनैश्वर के द्वारा प्रताडित मार्ग में बृहस्पति गमन करें तो सभी मनुष्यों
को भय होता है ||12|
राजदीपो निपतते भ्रश्यतेऽधः कदाचन ।
षण्मासात पंचमासाद्वा नृपमन्यं निवेदयेत् ॥ 12 ॥
यदि राजा का दीपक अकारण नीचे गिर जाय तो छः महीने या पाँच महीने में अन्य राजा होने का निर्देश समझना चाहिए 1112 111
'हसन्ति यत्र निर्जीवाः धावन्ति प्रवदन्ति च । जातमात्रस्य तु शिशोः सुमहद्भयमादिशत् ।।122
जहाँ निर्जीव - जड़ पदार्थ हँगने हों, दौड़ते हो और बातें करने हों वहाँ उत्पन्न हुए समस्त बच्चों को महान भय का निर्देश समझना चाहिए ।। 12211 निवर्तते यदा छाया परितो वा जलाशयान । प्रदृश्यते च दैत्यानां सुमहद्भय' मादिजेत् ||123।।
यदि जलाशय - तालाब, नदी आदि के चारों ओर में छाया लौटती हुई दिखलाई गई तो दैत्यों के महान भय का निर्देश समझना चाहिए 1123
अद्वारे द्वारकरणं कृतस्य च विनाशनम् । हस्तस्य ग्रहणं वाऽपि तदा
त्पातलक्षणम् 11124॥
अद्वार में जहाँ हार करने योग्य नहीं बहाँ द्वार करना, किये हुए कार्य का - विनाश करना और नष्ट वस्तु को ग्रहण करना उत्पात का लक्षण है ।। 124 "यजनोच्छेदनं यस्य ज्वलितांगमथाऽपि वा ।
स्पन्दते वा स्थिरं किंचित् कुलहानि तदाऽऽदिशेत् ॥ 125॥
यदि किसी के बजन – पूजा, प्रतिष्ठा, यज्ञादि का स्वयंमंत्र उच्छेद - विनाश हो अथवा अंग प्रज्वलित होते हो अथवा स्थिर वस्तु में चंचलता उत्पन्न हो जाय तो कुलहानि समझनी चाहिए ।।1251
देवज्ञा भिक्षवः प्राज्ञाः सात्रवश्च पृथग्विधाः । परित्यजन्ति तं देशं ध्रुवमन्यत्र शोभनम् 1112611
दैवज्ञ - ज्योतिषियों भिक्षुओं
मनीषियों और साधुओं को विभिन्न प्रकार
के उत्पात होने वाले देश को छोड़कर अन्यत्र निवारा करना ही श्रेष्ठ होता
u1260
निर्जीवन 4. लक्षणम् 15. वजने छायं वस्त्र ।
जस2 1 3. जलाया भु