Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहुसंहिता
नीचे सैन्य पड़ाव करने वाला राजा युद्ध को इच्छा करता है 11:411
नीचैनिविष्टभपस्या नीचेभ्यो भयमादिशेत ।
यथा दृष्टेषु देशेषु तज्ज्ञभ्य: प्राप्नुयाद् वधम् 11.75 नीचे स्थानों में स्थित रहने वाले राजा को नीचों से भय होता है । तथानुसार देखे गये देशों में उनसे वध प्राप्त होता है ।। 175॥
यत् किचित् परिहीनं स्यात् तत् पराजयलक्षणम् ।
परिवृद्ध च यद् किंचिद् दृश्यते विजयावहम् ।।1761 जो कुछ भी कमी दिखलाई पड़े वह पराजया की सूचिका है और जो अधिकता दिखलाई पड़े वह विजय की सूचिता होती है ।। ! 76
दुर्वर्णाश्च दुर्गन्धाश्च कुवेषा व्याधिनस्तथा।
सेनाया ये नराश्च स्युः शस्त्रवध्या भवन्त्यथ ॥1771 बुरे रंग वाले, दुर्गन्धित, कुवेषधारी और रोगी सेना के व्यक्ति शस्त्र के द्वारा वध्य होते हैं 1117711
यथाज्ञानप्ररूपेण राज्ञो जयपराजयः।
विज्ञेयः सम्प्रयातस्य भद्रबाहुवचो यथा 178॥ इस प्रकार मे भद्रावाहु स्वामी के बचनानुसार प्रयाण करने वाले राजा की । जग-पराजय अवगत कर लेनी चाहिए ।।17811
परस्य विषयं लब्ध्वा अग्निदग्धा न लोपयेत् ।
परदारां न हिस्येत् पशन वा पक्षिणस्तथा॥17911 शत्रु के देश को प्राप्त करके भी उश अग्नि में नहीं जलाना चाहिए और न उस देश का लोप ही करना चाहिए । परस्त्री, पशु और पक्षियों की भी हिंसा नहीं करनी चाहिए ।।17911
वसीकतेषु मध्येषु न च शस्त्रं निपातयेत्।
निरापराधचित्तानि नाददीत कदाचन ।।180॥ अधीन हार देशों में शरत्रपात प्रयोग नहीं करना चाहिए । निरपराधी व्यक्तियों को कभी भी काट नहीं देना चाहिए ।। 18011
1. भूपर : ० 2 अग्निफनए मवस्तु भाव
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