Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाइसंहिता
रक्त की बूंदें दिखलाई पड़ें उस राजा की पराजय होती है ॥1 6211
नरा यस्य विपद्यन्ते प्रयाणे वारणः पथि।
कपालं गृह्य धान्ति दोनास्तस्य पराजयः ॥16311 जिस राजा के प्रयाण-काल में मार्ग में उसके हाथियों के द्वारा मनुष्य पीड़ित हो और बे मनुष्य अपना सिर पकड़कर दीन होकर भागें तो उस राजा की पराजय होती है ।।। 6341
यदा धुनन्ति सोदन्ति निपतन्ति किरन्ति च ।
खादमानास्तु खिद्यन्ते तदाऽऽख्याति पराजयम् ।।1640 जिसके प्रयाण काल में थोड़े पंच संचालन अधिक करते हो, खिन्न होत हां, गिरत हो, दुःखी होत हो, अधिक लीद करते हों और घास खांत समय खिन्न होते हों तो व उसकी प |ी भूलये है .. !:411
हेषल्यभोक्षणमश्वास्तु विलिन्ति खुरंधराम् ।
नदन्ति च यदा नागास्तदा विन्द्याद ध्रुवं जयम् ।।1651 बाई बार-बार होगा ही, जुरों जगीन को मोदन हो और हाथी प्रसन्नता की चिया बारा हो तो आगो निगचित्त जय गमअनी चाहिए ।। ! 6511
पुष्पाणि पीतरक्तानि शुक्लानि च प्रदा गजा: ।
अभ्यन्तराग्रदन्तषु दर्शयन्ति यदा जयम् ।।160 यदि हाथी पीन, गत और श्वेता
भीती यांना के अग्रभाग में दिसलाना। मालूम हो । जमाना चाह! it] i. fit:
यदा मुंन्ति शुष्माभिर्नागा नादं पुन: पुन: ।
गरसैन्यौपघाताय तदा विन्द्याद् ध्र वमजयम् ॥1670 जब हाथी गुड । बार-बार नाद कारन हो तो गरगना माना के बिनाश मे. लिए प्रयाण करने वाले राजा को जय होती है ।।। 6 715
पादै: पादान विकन्ति तला बिलिन्ति च ।
गजास्तु यस्य सेनाय निरुध्यन्ते ध्र बं' परैः ।। भिम गना का हाथी परी द्वारा पं को खोने अथवा तल कमरा धरती को खोदें सो शत्रुन द्वारा नना का निरोध होता है ।।16811
I. वर
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