Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहुसंहिता
82, 84 और 86 दिनों में समान भाग देने पर शुक्र का समान प्रवास आ जाता है ।।18 11
द्वादशाहं च विशाहं दशपंच च भार्गवः ।
नक्षत्रे तिष्ठते त्वेवं समचारेण पूर्वत: ।।8।। बारह दिन, जीम दिन और पन्द्रह दिन शुक्र एक नक्षत्र पर पूर्व दिशा से वित्त गण करने पर निवास करता है ।। 1 8211
पाशं वातं रजो धर्म शीतोष्णं वा प्रवर्षणम् ।
विधुदुल्काश्च कुरुते भार्गवोऽस्तमनोदये ।।४।। शुक्र का अम्ल होगा धुनि, बर्षा, धूम, गर्मी और ठण्डक का पड़ना, विद्युत्पात और उल्कापात आदि फलों को बारता है ।। 83।। सितकुसुमनिभस्तु भार्गव: प्रचलति वीथीषु सर्वशो यदा वै । घटगृहजलपोतस्थितोऽभूद् बहुजलकन्च तत: सुखदश्चारु ॥18401
श्वेत गृहपों के मामान वर्ण वाला शुत्र वीथियों में गमन करता है, तो निश्चय से ग़भी ओर व जलवृष्टि होती है तथा वर्ष सुस्व देने वाला और आनन्ददायी व्यतीत होता है ।। 1 8411
अत ऊदध्वं प्रवक्ष्यामि चक्रं चारं निबोधत ।
भार्गवस्य समासेन तथ्यं निर्ग्रन्थभाषितम्।।। 85।। इसके पश्चात् शुक्र के बकचार र निमाण मांक्षेप में किया जाता है, जैमा कि निम्रन्थ मुनियों ने वर्णन किया है ।।। 8.51
पूर्वेण विशऋक्षाणि पश्चिमेकोनविंशतिः ।
चरेत प्रकतिचारेण समं 'सीमानिरीक्ष्योः 1186॥ .. गीमा निगक्षण में स्वाभाविक गति से पूर्व में वीस नक्षत्र और पश्चिम में उन्नीरा नक्षत्र गमन करता है ।।186
एकविशं यदा गत्वा याति विशतिमं पुनः ।
भार्गवो स्तमने काले तद्वकं विकृतं भवेत् ।। 187।। अस्त काल में इक्कीसवें नम लक गहुँचकर शक एनः बीसवे नक्षत्र पर आता है, इसी लौटने की गति को उमा विकृत वक्र कहा जाता है ।। 187।।
J. बंदणदः , 10; 2. पन म | 3. नानिम्कियो: म ।