Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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पंचदशोऽध्याय
अतोऽस्य यथाभावा विपरीता भयावहाः । शुक्रस्य भयदो' लोके कृष्णे नक्षत्रमण्डले 1227
उपर्युक्त प्रतिपादित वर्णों में यदि विपरीत व शुक्र का दिखलाई पड़े तो भय प्रद होता है। शुक्र का कृष्णनक्षत्र मण्डल में प्रवेश करना अत्यन्त भयप्रद है । अर्थात् जिस ऋतु में शुत्र का जो वर्ण बतलाया गया है, उसे विपरीत वर्ण का दिखलाई पड़ना अशुभ फल सूचक होता है । 227।।
पूर्वोदये फलं यत् तु पच्यतेऽपरतस्तु तत् । शुक्रस्यापरतो यत्तु पच्यते पूर्वतः फलम् 11228।।
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शुक्र के पूर्वोदय का जो फन हैं वही पश्चिमोदय में घटित होता है तथा शुक्र के मोदका जो फल है, वहीं पूर्वोदय में भी घटित होता है 11228 एवमेवं विजानीयात् फल-पाकी समाहितः । कालातीतं यदा कुर्यात् तदा घोरं समादिशेत् ॥ 2291 इस प्रकार शुक के फल चाहिए। जब शुक्र के उदय में कालातीत हो – विलम्ब हो तो अत्यन्त कष्ट होता है ॥2291 सवकचारं यो वेत्ति शुक्रवारं स बुद्धिमान् । श्रमणः स सुखं याति क्षिप्रं देशमपीडितम् ॥2300
को
जोश्रमण - मुनि शुक्र के चार, वक्र, उदय, अतिचार आदि को जानता है, वह बुद्धिमान् पीड़ित देश में विहार कर शीघ्र ही सुख प्राप्त करता है ।12301 यदाऽग्निवर्णो रविसंस्थितो वा वैश्वानरं मागंसमाश्रितश्चः। तदाभव शंसति सोऽजनि जातं तज्जातजं साधयितव्यमन्यतः ॥231॥
अत्र शुन अभिवर्थ हो अथवा सूर्य के अंशकला पर स्थित हो अथवा वैश्वानर वीथि में स्थित हो तो अग्नि का भय रहता है तथा अग्नि से उत्पन्न अन्य प्रकार के उपद्रवों को भी सम्भावना रहती है || 2311
इति सकलमुनिजनानन्दकन्दोदय महामुनिश्रीभद्रबाहुविरचिते महानिमितशास्त्रे भगत्रिलोकपतिर्दव्यगुरोः शुक्रस्य चाः समाप्तः ||15||
विवेचन - शुक्रोदय विचार – शुक्र का अश्विनी, मृगशिर, रेवती, हस्त, पुण्य, पुनर्वसु, अनुराधा, श्रवण और स्वाति नक्षत्र में उदय होने से सिन्धु, गुर्जर,
1. चतुरा मु । 2. श्रिस्य 3. A