Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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चतुदंगोऽध्याय:
225 जहाँ मेघ मद्य, रुधिर, हली, अग्नि चिनगारियाँ और चर्वी की वर्षा करते है वहाँ चार प्रकार का भय होता है ।।।3।।
सरीसपा जलचरा: पक्षिणो द्विपदास्तथा।
वर्षमाणा जलधरात् तदाख्यान्ति महाभयम् ॥14॥ जहाँ मेघों से सरीसृप-रीढ बाले मादि जन्तु, जलचर-मेढ़क, मछली आदि एवं द्विपद पक्षियों की वर्षा हो, वहाँ घोर भय की सूचना समझनी चाहिए ।। 140
निरिन्धनो यदा चाग्निपरीक्ष्यते सततं पुरे।
स राजा नश्यते देशाच्छण्मासात परतस्तदा ॥15॥ यदि राजा नगर में निरन्तर विना धिन के अग्नि को प्रज्वलित होते हुए देखें तो वह राजा छ: महीने के उपरान्त उक्त घटना में छः महीने पश्चात् बिना को प्राप्त हो जाता है ।।। 511
दीप्यन्ते यत्र शस्त्राणि वस्त्राण्यश्वा नरा गजाः ।
वर्षे च म्रियते राजा देशस्य च महद्भयम् ॥16॥ जहाँ शस्त्र, वात्र, अश्य . घोड़ा, मनुष्य और हाथी अादि गलत हुए दिखलाई पड़ें वहाँ इस घटना के पश्चात् एक वर्ष में राजा का भरण हो जाता है और देश के लिए महान् भय होता है ।।। 611
चैत्य'वृक्षा रसान् यद्यत् "प्रत्रवन्ति विपर्ययात् ।
समस्ता यदि वा व्यस्तास्तदा "देशे भयं वदेत् ॥17॥ यदि चैत्यवृक्ष गुलर ब. वृक्षों के विपर्यय रम टपके अथवा चैत्यालय के समक्ष स्थित बृक्षों में में सभी मे या पृथवा-पृथक् वृक्ष में विपरीत रस टप अर्थात् जिस वृक्ष में जिस प्रकार का स निकलता है, उराग भिन्न प्रकार का रस निकले तो जनपद के लिए भय का आगमन सगझना चाहिए ।।।7।।
दधि क्षौद्रं तं तोयं दुग्धं रेतविमिश्रितम्।
'प्रस्त्रवन्ति यदा वृक्षास्तदा व्याधिभयं भवेत् ॥18॥ जब वृक्षों में दही, शहद, श्री, जल, दूध और वीरां मिश्रित रस निकले तव
सन्ति । । 2. वमंगाल हाद नाम : दाणम् न । 3. दीप्यते C 14. वृक्षामा । 5 भवन म । 6. प्रयागमन । 7. निपात मु०। 8 विदुः ग•i