Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
View full book text
________________
पंचदशोऽध्यायः
21
यदि पुनर्वगु और पूर्वाषाढ़ा में शुक्र मध्यम गति से गमन करे तो व्याधि और वर्षा सर्वत्र होती है ।।88॥
आषाढां श्रवणं चैव यदि मध्येन गच्छति ।
कुमारांश्चैव पोड्येताऽनार्याश्चान्तवासिनः ॥89॥ उत्तरापाढ़ा और श्रवण में जब शुक्र मध्यम गति से गमन करता है तो कुमार, अनार्य और अन्त्यजों को पीड़ा होती है 189।।
प्रजापत्यमाषाढां च यदा मध्येन गच्छति ।
तदा व्याधिश्च चौराश्च पीड्यन्ते वणिजस्तया॥9 रोहिणी और उत्तरापाद में जब शुक्र मध्यम गति से गमन करता है तो व्यापारी, रोगी और चोरों को पीड़ा होती है 1190।।
चित्रामेब विशाखां च याम्यमानॊ च रेवतीम् ।
मैत्रे भद्रपदां चैव याति वर्षति भार्गवः ॥911 चित्रा, विशाखा, भरणी, आर्द्रा, रेवती, अनुराधा और पूर्वभाद्रपद में जब शुक्र गमन करता है तो क्या हाता है ! 111
फल्गुन्यथ भरण्यां च चित्रवर्णस्तु भार्गवः ।
तदा तु तिष्ठेद् गच्छेद् तुवकं भाद्रपदं जलम् ॥92॥ जब विचित्र वर्ण का शुक्र पूर्वाफाल्गुनी और भरणी में गमन करता है या स्थित रहता है तो भाद्रपद मास में निश्चय से वर्षा होती है ।192।।
प्रत्यूषे पूर्वतः शुक्रः पृष्ठतश्च बृहस्पतिः । यदाऽन्योऽन्यं न पश्येत् तदा चक्र 'परिवर्तते ॥93।। धर्मार्थकामा लुप्यन्ते सम्भ्रमो वर्णसंकरः । नृपागां च समुद्योगो यतः शुक्रस्ततो जयः ॥940 अवष्टिश्च भयं घोरं दुर्भिक्षं च तदा भवेत् ।
आढकेन तु धान्यस्य प्रियो भवति ग्राहक: 1951 प्रातःकाल में पूर्व में शुक्र हो और उसके पीछे बृहस्पति हो और परस्पर में एक-दूसरे को न देत हो तो शासनाचक्र में परिवर्तन होता है; धर्म, अर्थ, काम लुप्त हो जाते हैं, वर्णसंकरों में आकुलता व्याप्त हो जाती है और राजाओं की
1. प्रा! | 2. व। शुव भाद्रपद अल म् गु० । 3. स म । 4. प्रयतैते मु० ।