Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
View full book text
________________
पंचदशोऽध्यायः
283
मध्येन प्रज्वलन गच्छन् विशाखामश्वजे नपम् ।
उत्तरोऽवन्तिजान् हन्ति स्त्रीराज्यस्थांश्च दक्षिणः ।।1261 यदि शुक्र प्रज्वलित होता हुआ उत्तर में विशाखा और अश्विनी नक्षत्र के मध्य से गमन करता है तो अवन्ति देश में उत्पन्न व्यक्तियों का घात एवं दक्षिण से गमन करता है तो स्त्री राज्य के व्यक्तियों का विनाश करता है ।। 1261
अनुराधास्थितो शुक्रो यायिनः प्रस्थितान् वधेत् ।
मर्दते च मियो भेदं दक्षिणे न तु बामगः ।।127॥ अनुराधा स्थित शुक्र यायी - आक्रमण करने के लिए प्रस्थान करने वालों के वध का संकेत करता है । यदि अनुराधा नक्षत्र का शुक्र मर्दन करे तो परस्पर में मतभेद होता है । यह फल दक्षिण की ओर का है, वायों और का नहीं 11127॥
मध्यदेश तु दुर्सिमा वायं मादुनये तरः ।
फलं प्राप्यन्ति चारेण भद्रबाहुवचो यथा ॥128॥ यदि अनुराधा नक्षत्र में शुक्र का उदय हो तो मध्य देश में दुभिक्ष और जय होती है । भद्रबाहु स्वामी का सा बचन है कि शुक्र का फल उसके विचरण के अनुसार प्राप्त होता है ।। 1 28।।
ज्येष्ठास्थः पीडयेज्येष्ठान 'इक्ष्वाकन गन्धमादजान ।
मर्दनारोहण "व्याधि मध्यदेशे 'ततो वधत् ।।129॥ ज्येष्ठा नक्षत्र में स्थित शुक्र इक्ष्वाकुवंश तथा गन्धमाशा गर्वत पर स्थित बड़े व्यत्रितयों को पीड़ित करता है । पदंन और आरोषणा ने बाला शुक्र विनाश करता है तथा मध्य देश ने मत-मतान्तों का निराकरण करता है 111291
दक्षिण: क्षमज्ज्ञेयो वामगस्तु भयंकरः।
"प्रसन्नवर्णो विमलः स विज्ञेयो "सुखंकरः ॥13011 दक्षिण वा ओर ग ज्याला नक्षत्र में गमन करने वाला गुक क्षेम करने वाला होता है और बायीं ओर में गमन करने वाला शुक्र भयंकार होता है तथा निर्मल श्रेष्ठवर्ण का शुक्र शुख सपना होता है 113011
हन्ति मूलफलं मूले 'कन्दानि च वनस्पतिम्।
औषध्योर्मलयं चापि माल्यकाष्ठोपजीविनः ॥13111 मूल नक्षत्र स्थित शुक्र वनस्पति को फल, मूल, कान्द, औषधि, चन्दन एवं
।. मु.। 2. ६४ानमा गनिमान् मु।। 3. हमि मु. । 4. मान वधेत म । 5. प्रशः । न । 6. गुलामहः मु० । 7. कन्धान य प ।