Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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पंचदशोऽध्यायः
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हन्यादश्विनीप्राप्त: सिन्धुसौवीरमेव च ।
मत्स्यांश्च कुनटान रूढो मर्दमानश्च हिंसति ॥150॥ अश्विनी नक्षत्र में स्थित शुक्र सिन्धु और सौवीर देश का विनाश करता है। इस नक्षत्र का आरोहण और मर्दन करने से शुक्र मत्स्य और कुनटों का पात करता है।।150
अश्वपण्योपजीविनो दक्षिणो हन्ति भार्गवः।
तेषां व्याधि तथा मृत्यु सृजत्यथ तु 'वामगः। दक्षिणस्थ भार्गव-शुक्र अश्व-घोड़ों के व्यापारी और दुकानदारों का घात करता है और वामग शुक्र उनके लिए व्याधि और मृत्यु करता है ॥15॥
भत्यकरान् यवनांश्च भरणीस्थ: प्रपीडयेत्।
किरातान् मद्रदेशानामाभोरान्मर्द-रोहणे ॥15॥ भरणी स्थित शुक्र भृत्य कर्म करने वालों एवं यवनों-मुसलमानों को पोड़ा करता है। इस नक्षत्र का मर्दन और रोहण करने वाला शुत्र किरात, मद्र और आभीर देश का पात करता है ।115211
प्रदक्षिणं प्रयातश्च द्रोणं मेघ निवेदयेत्।
वामयः संम्प्रयातस्य रुद्रकर्माणि हिंसति ॥153॥ इस नक्षत्र मे दक्षिण की ओर गया शुक्र एक द्रोण प्रमाण मेघों को वर्षा करता है और बायीं ओर गया शुक्र रुद्र कार्यों का विनाश करता है ।। 15311
एवमेतत् फलं कुर्यादनुचारं तु भार्गवः ।
पूर्वत: पृष्ठतश्चापि समाचारो भवेल्लघुः ।।154॥ __ इस प्रकार शुक्र अपने विचरण का फल देता है। पूर्व से और पीछे में शुक्र के गमन का संक्षिप्त फल वाहा गया है।।15411
उदये च प्रवासे च ग्रहाणां कारणं रविः।
प्रवासं छादयन्कुर्यात् मुञ्चमानस्तथोदयम् ।।155॥ ग्रहों के उदय और प्रवाग में कारण सूर्य है । यहाँ प्रवास का अभिप्राय ग्रहों के अस्त होने गहै । जब सूर्य ग्रहों को अच्छादित कारता है तो यह उनका अस्त कहा जाता है और जव छोड़ता है तो उदय माना जाता है। 1 55।।
1. भार्गवः मु. । 2. समाचार तु यल्लघुः मु० ।