Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहुसंहिता
उद्योग में प्रवृत्ति होती है। क्योंकि जिस ओर शुक्र रहता है, उसी ओर जय होती है। तात्पर्य यह है कि जो नृपशु के सम्मुख रहता है, उसे विजय लाभ होता है । अनावृष्टि, घोर दुर्भिक्ष तथा एक आढक प्रमाण जल की वर्षा होने से धान्य ग्राहकों के लिए प्रिय हो जाते हैं अर्थात् अनाज का भाव महंगा होता 1193-9511
यदा च पृष्ठतः शुक्रः पुरस्ताच्च बृहस्पतिः । यदा लोकयतेऽन्योन्यं तदेव हि फलं तदा ॥96||
जव शुक्र पीछे हो और वृहस्पति आगे हो और परस्पर दृष्टि भी हो तो भी उपर्युक्त फल की प्राप्ति होती है ||9|
कृत्तिकायां यदा शुक्रः विकृष्य 'प्रतिपद्यते । ऐरावणपथे यद्वत् तद्वद् ब्रूयात् फलं तदा ॥970
यदि शुक्र कृतिका नक्षत्र में खिला हुआ-सा दिखलायी पड़े तो जो फलादेश शुक्र का ऐरावणवीथि में शुक्र के गमन करने का है, वही यहाँ पर भी समझना चाहिए |97 |
रोहिणीशकटं शुक्रो यदा समभिरोहति । चारूढाः प्रजा ज्ञेया महद्भयं विनिदिशेत् ॥98 ॥
पाण्ड्य केरलचोलारच 'चेद्याश्च " करनाटकाः । 'चेरा विकल्पकाश्चैव पीड्यन्ते तादृशेन यत् ॥9॥
यदि शुक्र कटाकार रोहिणी म आरोहण करें तो प्रजा शासन में आरूढ़ रहती है और महान् भय होता है । पाण्डव, केरल, चोल, कर्नाटक, चेदि, चेर और विदर्भ आदि प्रदेश पीड़ा को प्राप्त होते हैं 1198-99 ।।
प्रदक्षिणं यदा याति तदा हिंसति स प्रजाः ॥ उपघातं बहुविधं वा शुक्रः कुरुते भुवि ||oo
जब शुक्र दक्षिण की ओर गमन करता है तो प्रजा का विनाश एवं पृथ्वी पर नाना प्रकार के उपद्रव, उत्पात आदि करता है |1001
संव्यानमुपसेवानो "भवेयं सोमशर्मणः ।
सोमं च सोमजं चैव सोमपार्श्व च हिंसति ।10।।।
1 प्रतिदृश्यते । 2. ठा0 3. कन्याटका मूल 4. योग 3. भद्रेय गुरु ।