Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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पंगटोमा
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अहिच्छत्र, कच्छ और सूर्यावतं को पीड़ा होती है। उत्पात वाले देशों का विनाश होता है ।। 2011
यदा वाऽन्ये तिरोहन्ति तत्रस्थं भार्गवं ग्रहाः । निषादा: 'पाण्डवा म्लेच्छा: संकुलस्थाश्च साधवः ।।2।। कौण्डजाः पुरुषादाश्च शिल्पिनो बर्बराः शकाः । वाहीका यवनाश्चैव मण्डूका: केकरास्तथा ।।2211 पाञ्चाला: कुरवश्चव पोड्यन्ते सयुगन्धराः ।
एकमण्डलसंयुक्ते भार्गव पीडिते फलम् ।।23।। यदि द्वितीय मण्डल स्थित शुक्र को अन्य ग्रह आच्छादित करें तो निपाद, पाण्डव, लच्छ, साधु, व्यापारी, कोण्डेय, पुरुषार्थी, शिल्ली, बर्ष र, शक, वाहीक, यवन, मण्डूक, कंकर, पांवाल, कोरव और मान्धा? आदि को पीड़ा होती है। यह एक मण्डला में स्थि । शुजा थे पीड़न का फल है ॥21-2311
तृतीये भण्डले शुक्रो यदास्तं यत्त्युदेति वा । तदा धान्यं सनिचयं पीड्यन्ते "न्यूहकेतवः ॥24॥ वाटधाना: कुनाटाश्च कालकूटश्च पर्वतः । ऋषय: कुरुपाञ्चालाश्चातुर्वर्णश्च पीड्यते ।।25।। वाणिजश्चैव कालज्ञः पण्या वासास्तथाऽश्मका: । अवन्तीश्चापरान्ताश्च सपल्याः सचराचरा: 126।। पीड्यन्ते भयेनाथ क्षुधारोगेण चादिताः ।
महान्तश्शवराश्चैव पारसीकास्सवावना: ॥27।। यदि तृतीय भण्डल में शुक्र उदय या अग्न' को प्राप्त हो गो धान्य और उसका समूह विनाश को प्राप्त होला है। मुख और धनं पीड़ित होते हैं । बाटधान, नुनाट, कालकूट पवन, ऋषि, यम, पांचाल और चावणं को पीड़ा होती है। व्यापारी, कुलीन, ज्योतिषी, दुकानदार, नमवासी-ऋषि-मुनि, अभिगी प्रदेश, अवन्ति दिवासी, उपान्तक. सोमम मी बगादि, हारमी, बानादिक भयभीत और पत्रक द्वारा पीड़ित होते है तथा क्षुधा की पीड़ा भी उठानी पड़ती है। शुक्र के स्नेह, संस्थान और वर्ण का द्वारा नापीड़न का भी विचार करना चाहिए ।।24-27।।
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