Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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चतुर्दशोऽध्यायः
स्थिराणां कम्पसरणे चलानां गमने तथा । ७ ब्रयात् तत्र वधं राज्ञः षण्मासात् पुत्रमन्त्रिणः ॥8॥
स्थिर पदार्थ--जइ-चेतनात्मक स्थिर पदार्थ कांपने लगें—चंचल हो जायें और चंचल पदार्थों की गति रुक जाय----स्थिर हो जाये तो इस घटना के छः महीने के उपरान्न ग़जा एवं मंत्री पुत्र का वध होता है ।18।।
गे हम बार दो युद्धसामथे। स्थावराणां वधं विन्द्यात्रिमासं' नात्र संशयः ॥७॥ युद्धकाल में अकारण चलने, हगने और रोने-कलाने से तीन महीने के उागन्त स्थावर-वहां के निवासियों का निस्सन्देह यध होता है ।।9।।
पक्षिणः पशवो मा: प्रसूयन्ति विपर्ययात।
यदा तदा तु षण्मासाद् "भूयात् राजवधो ध्रुवम् ॥10॥ यदि पक्षी, पशु और मनुष्य विपर्यश-~-विपरीत सन्तान उत्पन्न करें अर्थात् पक्षियों के पशु या गनुष्य की आकृति की मन्तान उत्पन्न हो, पशुओं के पक्षी या मनुष्य की आकृति की मन्नान उतान्न हो और मनुष्यों के पशु या पक्षी की आकृति की सन्तान उतान्न हो तो इस घटना के छ: महीने उपरान्त राजा का बध होता है और उस जनपद में भय – आतंत्र व्याप्त हो जाता है ।। 100
विकृतः पाणिपादाद्यैर्घनश्चाप्यधिकत्तथा।
यदा त्वते प्रसूयन्ते क्षुद्भयानि तदादिशेत् ।।! विगत हाथ, पैर बाली अथवा न्युन या अधिक हाथ, गैर, सिर, आँख वाली सन्तान पशु-पक्षी और मनुष्य की उत्पन्न हो तो क्षुधा की पीड़ा और भय-आतंक आदि होने की सूचना अवगन करनी चाहिए !!"
षण्मासं द्विगुणं चापि परं वाथ चतुर्गणम।।
राजा च म्रियते तत्र भयानि च न संशयः ।।1211 जहाँ उक्त प्रकार की घटना घटित होती है, वहां छ: महीने, एक वर्ष और दो वर्ष के उपरान्त राजा की मृत्यु एवं निस्सन्देह भय होता है ||1211
मद्यानि रुधिरा स्थीनि धान्यांगारवसास्तथा। 'मधवान् वर्षले यत्र तत्र बिन्धात् महद्भयम् ॥13॥
I. गगा पि.. | 2 दाने.. | 3 दिन ५० 1 4 रथाश्रमक.म् मु.।। 5. पिये ) | ( । जबाबदा ग• I 7 inान वय विधानमश्मि