Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
View full book text
________________
त्रयोदशोऽध्यायः
201
सात
यदि दक्षिण-दाहिनी, पार्श्व-ओर से घोड़ा शयन करे तो जय देने वाला और पेट की ओर से शयन करे तो आश्चर्यपूर्वक जय देता है 1115611
वामार्षशायिनश्चैव तुरङ्गा नित्यमेव च ।
राज्ञो यस्य न सन्देहस्तस्य मृत्यु समादिशेत् ॥15॥ यदि नित्य बायीं आधी करवट से घोड़ा शायन बारे तो निसन्देह उस राजा की मृत्यु की सूचना समझनी चाहिए ।। 15718
सौसप्यन्ते यदा नाग: पश्चिमश्चरणस्तथा।
सेनापतिवधं विद्याद् धदाउन्न च न भुजत 158 यदि हाथी पश्चिम की ओर पैर करके शयन करे तथा कोई अन्न नहीं खाये तो सेनापति का वध समझना चाहिए ।।।58॥
यवान्नं पादवारी वा नाभिनन्दन्ति हस्तिनः ।
यस्यां तस्यां तु सेनायामचिराद्वधमादिशेत् ॥1591 जिस सेना में हाथी अन्न, जल और तृण नहीं खात हों -त्याग कर चुक हों, उस सेना में शीघ्र ही वध होता है ।।15911
निपतन्त्यग्रतो यद्वै त्रस्यन्ति वा रुदन्ति वा।
निष्पदन्ते समुद्विग्ना यस्य तस्य वधं वदेत् ।। 1601 जिस राजा के प्रयाण काल में उसके आगे आकर दुःखी या रुदन करता हुआ व्यक्ति गिरता हो अथवा उद्विग्न होकर आता हो तो उस गा मा वध होता है ।।।60॥
ऋरं नदन्ति विषमं विस्वरं निशि हस्तिन: ।
दोप्यमानास्तु केचित्तु तदा अनावधं ध्रुवम् ॥16॥ यदि रात्रि में हाथी क्रूर, विषम, पोर और बिहार विहार स्वर वाली आवाज करें अथवा दीप्त–ताप में जानते हुए दिखलाई पडू लो मना का शीन बध होता है ।।।6111
गो-नागवाजिनां स्त्रोणां मुखाच्छोणिर्ताबन्दवः ।
द्रवन्ति बहशो यत्र तस्य राज्ञः पराजयः ।।162।। जिस राजा को प्रयाण-काल में गाय, हाथी, घोड़ा, और स्त्रियों के मुख पर
1. सदमा: पायवारी
मनालाही न