Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहुसंहिता
इमं यात्राविधि कत्स्नं योऽभिजानाति तत्त्वतः।
न्यायतश्च प्रयुंजीत् प्राप्नुयात् स महत् पदम् ॥1861 जो राजा इस यात्रा विधि को वास्तविक और सम्पूर्ण रूप से जानता है और न्यायपूर्वक व्यवहार करता है, वह महान् पद प्राप्त करता है 11 ! 8611
इति महामनीश्वरसकलानन्द महामुनिभद्रबाहुविरचिते
महानिमित्तशास्त्रे राजधावाध्याय: समाप्तः । विवेचन-प्रग्नत यात्रा प्रकरण में राजा महाराजाओं की यात्रा का निरूपण आचार्य ने किया है। कि अब गणतन्त्र भारत में राजाओं की परम्परा ही समाप्त हो चुकी है । अतः यहाँ पर सब सामान्य के लिए यात्रा सम्बन्ध को उपयोगी बातों पर प्रकाश डाला जायगा। सर्वप्रथम यात्रा के मुहूर्त के सम्बन्ध म कुल लिखा जाता है। क्योंकि समय के साभाशभत्व का प्रभाव प्रत्येक जड़ या चेतन पदार्थ पर पड़ता है। यात्रा के गहत के लिए शुभ नक्षत्र, शुभ तिथि, शुभ वार और चन्द्रवास के विचार में अतिरिक्त वारशूल, नक्षत्र शूल, समय शूल, योगिनी और राशि के क्रम मा विचार भी करना चाहिए ।
यात्रा के लिए नक्षत्र-विचार अश्विनी, पुनर्वसु, अनुगधा, मृगशिरा, पुष्य, रेवती, इस्त, श्रवण और धनिष्ठा नक्षत्र यात्रा के लिए उनमः रोहिणी, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, । उत्तराभाद्रपद, पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वापाहा, पूर्वाभाद्रपद, ज्येठा, मूल और शतभिषा ये नक्षत्र मध्यम एवं 'भरणी, कृत्तिका, आर्द्रा, आश्लेपा, मघा, चित्रा, स्वाति, विशाखा ये नक्षत्र यात्रा के लिए निन्य हैं।
तिथियों में द्वितीया, पंचमी, सप्तमी, दशमी, एकादगी और त्रयोदशी शुभ । बताई गई हैं।
दिक्शूल और नक्षत्रशूल तथा प्रत्येक दिशा के शुभ दिन ज्येष्ठा नक्षत्र, सोमवार तथा अनिवार को पूर्व में, पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र और गुरुवार को दक्षिण मः रोहिणी नक्षत्र और जुत्रवार को पश्चिम एवं मंगल तथा बुधवार को उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में उत्तर दिशा में यात्रा करना वजित है। पूर्व दिशा में रविवार, मंगलबार और गुरुवार; पश्चिम में शनिवार, सोमवार, बुधधार और गुरुवार : उन र दिशा में गुरुवार, रविवार, सोमवार और शुक्रवार एवं दक्षिण दिशा में बुधवार, मंगलवार, मोमवार, रविवार और शुक्रवार को गमन करना शुभ होता है । जो नक्षत्र का विचार नहीं कर सकते हैं वे उक्त