Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहुसंहिता
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यदि प्रयाण करने वालों के लिए व्याधिया उत्पन्न हो जायें तथा अति शीत । विपरीत--अति उष्ण या अति रूक्ष में परिणत हो जाये तो राजा की यात्रा सफल नहीं होती है ।।] ! 3॥
निविष्टो यदि सेनाग्निः क्षिप्रमेव प्रशाम्यति ।
उपवा निदन्तश्च भज्यते सोऽपि बध्यते ।।1141. यदि सेना की प्रज्वलित अग्नि शीघ्र ही शान्त हो जाये-बुझ जाये तो बाहर । में स्थित आनन्दित भागने वाले व्यक्ति भी बध को प्राप्त होते हैं ।।। 1411
देवो वा यत्र नो वर्षत् क्षीराणां कल्पना तथा।
विद्यान्महद्भयं घोरं शान्ति तत्र तु कारयेत् ॥1150 जहाँ वर्षा न हो और जल जहाँ केवल कल्पना की वस्तु ही रहे, वहाँ अत्यन्त घोर भय होता है, अतः शान्ति का उपाय करना चाहिए ।।। 15।।
दैवतं दीक्षितान् वृद्धान् पूजयेत् ब्रह्मचारिणः ।
ततस्तेषां तपोभिश्च पापं राज्ञा प्रशाम्यति ॥16॥ राजा को देवताओं, यतियों, वृद्धों और ब्रह्मचारियों की पूजा करनी चाहिए: क्योंकि इनके तप के द्वारा ही राजा का पाप शान्त होता है । 116॥
'उत्पाताश्चापि जायन्ते हस्त्यश्वरथपत्तिषु ।
भोजनेष्वप्नीकेष राजबन्धश्चमूबधः ॥17॥ यदि हाथी, घोड़े, रथ और पैदल मना में उगात हो तथा सेना के भोजन में भी उत्पात—कोई अदभुत बात दिखलाई पड़े तो राजा को कैद और मंना का वध होता है ।।1 1711
उत्पाता विकृताश्चापि दृश्यन्ते ये प्रयायिणाम्।
सेनायां चतुरङ्गायां तेषामौत्पालिकं फलम् ॥118|| प्रयाण करने वालों को जो उत्पात और दिवार दिखलाई पड़ते हैं, चतुरंग रोना में उनका औत्पाति फन्न अवगत करना चाहिए !!! 18||
भेरीशंखमदंगाश्च प्रयाणे ये यथोचिता:।
निबध्यन्ते प्रयातानां विस्वरा वाहनाश्च ये 1119॥ भेरी, शंख, मृदंग का अन्य प्रयाण-माल में योचित हो--न अधिक और न
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