Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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अयोदशोऽध्यायः
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'चिह्न कुर्यात् क्वचिन्नीलं 'मन्त्रिणा सह बध्यते ।
म्रियते पुरोहितो वाऽस्य छत्र वा पथि भज्यते ॥108।। जिनको यात्राकाल में उपकरण --अस्त्र-शस्त्रों का दर्शन हो, उनका वध होता है । पक्वान्न नीरस और जला हुआ तथा घृत का बर्तन फटा हुआ दिखलाई पड़े तो व्याधि, भय, मरण और पराजय होता है। रथ, अस्त्र-शस्त्र और ध्वजा में जो राजा नील चिह्न अंकित करता है, वह मन्त्री सहित वध को प्राप्त होता है। यदि मार्ग में राजा का छत्र भंग हो तो पुरोहित का मरण होता है ।।106.15311
जायते चक्षुषो व्याधिः स्कन्धवारे प्रयायिनाम्।
अनग्निज्वलनं वा स्थात् सोऽपि राजा विनश्यति ॥109॥ प्रयाण करने वालों के सैन्य-शिविर में यदि नेत्र रोग उत्पन्न हो अथवा विना अग्नि जलाये ही आग जल जाये तो प्रयाण करने वाले राजा का विनाश होता है ।।10911
द्विपदश्चतुःपदो वाऽपि सन्मुंचति विस्वरः।
बहुशो व्याधितार्ता वा सा सेना विद्रवं व्रजेत् ।।110॥ यदि द्विपद-मनुष्यादि, चतुष्पद-चौपाये आदि एक साथ विकृत शब्द करें तो अधिक व्याधि से पीड़ित होकर सेना उपद्रव को प्राप्त होती है ।।1100
सेनायास्तु प्रयाताया कलहो यदि जायते।
द्विधा त्रिधा वा सा सेना विनश्यति न संशयः ॥11॥ यदि सेना के प्रयाण के समय कलह हो और सेना दो या तीन भागों में बंट ___ जाये तो निस्सन्देह उसका विनाश होता है ।।।। ||
जायते चक्षुषो व्याधिः स्कन्धावारे प्रयायिणाम्।
अचिरेणव कालेन साऽग्निना दह्यते चमः ॥12॥ यदि प्रयाण करने वाली सेना की प्रॉम्ब में शिविर में ही पीड़ा उत्पन्न हो तो शीन ही अग्नि के द्वारा वह सेना विनाश को प्राप्त होती है ।।।। 2 ।।
व्याधयश्च प्रयातानामतिशीत लियर्ययेत्।। अत्युष्णं चातिरूक्षं च राज्ञो यात्रा न सिध्यति ॥11311
J. चित्रं म । 2. स च मम्धी न । 3. मायने रक्षा गा.पध्रःवरे प्रयाना . यह पंक्ति मुद्रित पनि में नहीं है ।