Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहुसंहिता
वसुधा वारि वा यस्य यानेषु प्रतिहीयते । वज्रादयो निपतन्ते ससैन्यो वध्यते नृपः ॥u1ou
यदि प्रयाण काल में पृथ्वी जल से युक्त हो अथवा यान - रथ, घोड़ा, हाथी आदि की सवारी में होनता हो- सवारियों के चलने में किसी तरह की कठिनाई आ रही हो अथवा बिजली आदि गिरे तो राजा का सेना सहित विनाश होता है ।101
सर्वेषां शकुनानां च प्रशस्तानां स्वरः शुभः । पूर्ण विजयामाख्याति प्रशस्तानां च दर्शनम् ॥10210
सभी शुभ शकुनों में स्वर शुभ शकुन होता है। श्रेष्ठ शुभ वस्तुओं का दर्शन पूर्ण विजय देता है || 021
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फलं वा यदि वा पुष्पं ददते यस्य पादपः । अकालजं प्रयातस्य न सा यात्रा विधीयते ॥103
प्रयाण काल में जिरा नृप को असमय में ही वृक्ष फल या पुष्य दें, तो उस समय यात्रा नहीं करनी चाहिए ||103|
येषां निदर्शने किंचित् विपरीतं मुहुर्मुहुः । स्थालिका पिठरो वाऽपि तस्य
तद्वधमीहते ॥1041
प्रयाण काल में जिन वस्तुओं के दर्शन में कुछ विपरीतता दिखलाई पड़े अथवा बटलोई, मथानी आदि वस्तुओं के दर्शन हों तो उस राजा की सेना का वध होता है ||1041
"अचिरेणैव कालेन तद विनाशाय कल्पते ।
निवर्तयन्ति ये केचित् प्रयाता बहुशो नराः ॥10511
यदि गमन करने वाले अधिक व्यक्ति लौट कर वापस जाने लगें तो शीघ्र ही असमय में सेना का विध्वंस होता है । 1051
यात्रामुपस्थितोपकरणं तेषां च स्याद् ध्रुवं वधः । पक्वानां विरसं दग्धं 'सपिभाण्डो विभिद्यते ॥106॥ तस्य व्याधिभयं चाऽपि मरणं वा पराजयम् । " रथानां प्रहरणानांच ध्वजानामथ यो नृपः 11070
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1. तुर्ग । 2. विरानं सुरू | 3. अनामयं । 4 दग्धषुमीहते 5 स्वपहरणं मध्यमं वो मुषः मु