Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहुसंहिता
को
समझना चाहिए ||7|| नग्नं प्रव्रजितं दृष्ट्वा मंगलं मंगलाथितः । कुर्यादमंगलं यस्तु तस्य सोऽपि न मंगलम् ॥76॥
वाला आदि व्यक्ति यदि पियें तो
नम्न, दीक्षित मुनि आदि साधुओं का दर्शन मंगलार्थी के लिए मंगलमय होता है। जिसको साधु-मुनि का दर्शन अमंगल रूप होता है, उसके लिए वह भी मंगल रूप नहीं है ॥76॥
पीडितोऽपचयं कुर्यादाक ुष्टो वधबन्धनम् । ताडितो मरणं दद्याद् त्रासितो रुदितं तथा ॥77॥
यदि प्रयाण काल में पीड़ित व्यक्ति दिखलाई पड़े तो हानि, चीखता हुआ दिखलाई पड़े तो बध-बन्धन, ताड़ित दिखलाई पड़े तो मरण और रुदित दिखलाई पड़े तो त्रासित होना पड़ता है ॥77॥
पूजितः सानुरागेण लाभं राज्ञः समादिशेत् । तस्मात्तु मंगलं कुर्यात् प्रशस्त साधुदर्शनम् 1178
अनुराग पूर्वक पूजित व्यक्ति दिखलाई पड़े तो राजा को लाभ होता है, अतएव आनन्द मंगल करना चाहिए। यात्रा काल में साधु का दर्शन शुभ होता
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दैवतं तु यदा बाह्य राजा सत्कृत्य स्वं पुरम् । प्रवेशयति तद्राजा बाह्यस्तु लभते पुरम् ||790
जब राजा बाह्य देवता के मन्दिर की अर्चना कर अपने नगर में प्रवेश करता है तो बाह्य से ही नगर को प्राप्त कर लेता है ॥ 79
वैजयन्त्यो विवर्णास्तु" 'बाह्य राज्ञो यदाग्रतः । पराजयं समाख्याति तस्मात् तां परिवर्जयेत् ॥30॥
यदि राजा के आगे बहिर्भाग की पताका विकृत रंग बदरंगी दिखलाई पड़े
तो राजा की पराजय होती है, अतः उसका त्याग कर देना चाहिए |80||
सर्वार्थेषु प्रमत्तश्च यो भवेत् पृथिवीपतिः ।
हितं न शृण्वतश्चापि तस्य विन्द्यात् पराजयम् ॥81॥
जो राजा समस्त कार्यो में प्रमाद करता है और हितकारी वचनों को नहीं सुनता है, उसकी पराजय होती है ||81||
i.
2. सोत्तरामेन गुरु 3. प्रत्र । 4. रात्री बाह्य यदा प्रभु ।