Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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त्रयोदशोऽध्यायः
यदि सेना के प्रयाण के समय उल्का छिन्न-भिन्न दिखलाई पड़े तो शीघ्र ही सेना लौट आती है और यात्रा सफल नहीं होती ॥69 ॥
यस्या: प्रयाणे सेनायाः सनिर्घाता मही चलेत् । न तया सम्प्रयातव्यं साऽपि वध्येत सर्वशः ||70|
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जिस सेना के प्रयाण के समय घर्षण करती हुई स्त्री चले - भूकम्प हो तो उस सेना के साथ नहीं जाना चाहिए। क्योंकि उसका भी वध होता है ||70| अग्रतस्तु सपाषाणं तोयं वर्षति वासवः ।
सङ्ग्रामं घोरमत्यन्तं जयं राज्ञश्च शंसति ॥71॥
यदि सेना के आगे मेघ ओलों सहित वर्षा कर रहा हो तो भयंकर युद्ध होता है और राजा के जय लाभ में सन्देह समझना चाहिए || 7 ||
प्रतिलोमो यदा वायुः सपाषाणो रजस्करः । निवर्तयति प्रस्थाने परस्परजयावहः 17211
कंकड़-पत्थर और धूलि को लिये हुए यदि विपरीत दिशा का वायु चलता हो तो प्रस्थान करने वाले राजा को लौटना पड़ता है तथा परस्पर विजय लाभ होता है - दोनों को — पक्ष-विपक्षियों को जयलाभ होता है | 721
मारुतो दक्षिणो वापि यदा हन्ति परां चमूम् । 'प्रस्थितानां प्रमुखतः विन्द्यात् तत्र पराजयम् ॥73॥
यदि सेना के प्रयाण के समय दक्षिणी वायु बन रहा हो और यह सेना का बात कर रहा हो तो प्रस्थान करने वाले राजा की पराजय होती है 173
"यदा तु तत्परां सेनां समागम्य महाघनाः। तस्य विजयमाख्याति भद्रबाहुवचो यथा ॥74।।
यदि प्रयाण करने वाली सेना के चारों ओर बादल एकत्र हो जायें तो भद्रबाहु स्वामी के वचनानुसार उस सेना की विजय होती है |74||
हीनांगा जटिला बद्धा व्याधिताः पापचेतसः । षण्ढाः पापस्वरा ये च प्रयाणं ते तु निन्दिताः ॥75॥
प्रस्थान काल में ही होनांग व्यक्ति, बेड़ी आदि में बद्ध व्यक्ति, रोगी, गाप बुद्धि, नपुंसक, पाप स्वर - विकृत स्वर - तोतली बोली बोलने वाला, हकलाने
1. अस्थि प्रभु 3. महाजन: मु० । 4. पापाशय मुख ।
2. सुपर सेवा समय महाजनः गुण ।