Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
View full book text
________________
136
भद्रबाहुसंहिता
चलती है, तथा इस वर्ष गर्मी भी भीषण पड़ती है । देश के नेताओं में मतभेद एवं उपद्रव होते हैं । व्यापारियों के लिए उक्त प्रकार की वर्षा अधिक लाभदायक होती है। प्रथम चरण के लगते ही वर्षा का आरम्भ हो और समस्त नक्षत्र के अन्त तक वर्षा होती रहे तो वर्ष उत्तम नहीं रहता है । चातुर्मास के उपरान्त जल नहीं बरसता, जिससे फसल अच्छी नहीं होती । तृतीय चरण में वर्षा होने पर पौष में वर्षा का अभाव तथा फाल्गुन में वर्षा होती है । इस चरण में वर्षा का आरम्भ होना साधारण होता है । वस्तुओं के भाव नीचे गिरते हैं । आश्विन मास से वस्तुओं के भावों में उन्नति होती हैं । व्यापारियों को अशान्ति रहती है, बाजार भाव प्रायः अस्थिर रहता है। चतुर्थ चरण में वर्षा आरम्भ होने पर इस वर्ष उत्तम वर्षा होती है । सभी प्रकार के अनाज अच्छी तादाद में उत्पन्न होते हैं । भरणी नक्षत्र में वर्षा आरम्भ हो तो इस वर्ष प्रायः वर्षा का अभाव रहता है या अल्प वर्षा होती है। फसल के लिए भी उक्त नक्षत्र में जल की वर्षा होना अच्छा नहीं है । अनेक प्रकार की बीमारियाँ भी उक्त नक्षत्र में वर्षा होने पर फैलती हैं । यदि भरणी का क्षय हो और कृत्तिका भरणी के स्थान पर चल रहा हो तो प्रथम वर्षा के लिए बहुत उत्तम है । भरणी के प्रथम और तृतीय चरण बहुत अच्छे हैं, इनके होते वर्षा होने पर फसल प्राय अच्छी होती है, जनता में शान्ति रहती है । यद्यपि उक्त चरण में वर्षा होने पर भी जल की कमी ही रहती है, फिर भी फसल हो जाती है । द्वितीय और चतुर्थ चरण में वर्षा हो तो वर्षा के अभाव के साथ फसल का भी अभाव रहता है । प्रायः सभी वस्तुएं महंगी हो जाती हैं, व्यापारियों को भी साधारण ही लाभ होता है | नाना प्रकार की व्याधियाँ भी फैलती हैं ।
यहाँ वर्षा का आरम्भ श्रावण कृष्ण प्रतिपदा को मानना होगा तथा उसके बाद ही या उसी दिन जो नक्षत्र हो उसके अनुसार उपर्युक्त क्रम से फलाफल अवगत करना चाहिए। समस्त वर्ष का फल श्रावण कृष्ण प्रतिपदा से ही अवगत किया जाता है | )
वर्षा का प्रमाण निकालने क. विशेष विचार जिस समय सूर्य रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करे, उस समय चार घड़ा सुन्दर स्वच्छ जल मंगाएं और चतुष्कोण घर में गोबर या मिट्टी से लीपकर पवित्र चौक पर चारों बड़ों को उत्तर, पूर्व, दक्षिण और पश्चिम क्रम से स्थापित कर दें और उन जलपूरित घड़ों को उसी स्थान पर रोहिणी नक्षत्र पर्यन्त 15 दिन तक रखें, उन्हें तनिक भी अपने स्थान से इधर-उधर न उठाएँ । रोहिणी नक्षत्र के बीत जाने पर उत्तर दिशा वाले घड़े के जल का निरीक्षण करें। यदि उस घड़ा में पूर्णवार समस्त जन मिले तो श्रावण भर खूब वर्षा होगी। आधा खाली होवे तो आधे महीने वृष्टि और चतुर्थांश जल अवशेष हो तो चौथाई वर्षा एवं जल से शुन्य घड़ा देखा जाय तो श्रावण में प का अभाव समझना चाहिए। तात्पर्य यह है कि उत्तर दिशा के बड़े के जलप्रभाण