Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहुसंहिता
संवत्सर निकालने की प्रक्रिया संवत्कालो ग्रहयुतः कृत्वा शून्यरसहृतः।
शेषाः संवत्सग शेयाः प्रभवाद्या बुधैः क्रमात् ।। अर्थात्--विक्रम संवत में 9 जोड़कर 60 का भाग देने में जो शेष रहे, वह प्रभवादि गत संवत्सर होता है, उससे आगे वाला वर्तमान होता है । उदाहरणसंवत् 2047, इसमें 9 जोड़ा तो 2047+9-2056-:-60 = 34 उपलब्धि शेष 16, अतः । 6वीं संख्या चित्रभान की थी जो मत हो चला है, वर्तमान में सुभानु संवत् है, जो आगे बदल जाएगा, और वन्ति में तारण हो जाएगा।
प्रभवादि संवत्सर बोधक चक्र पाँच वर्ष ना एन युग होता है, इसी प्रमाण से 60 वर्ष के 12 युग और उनो ! 2 स्वामी हैं विष्णु. बृहस्पति, इन्द्र, अग्नि, ब्रह्मा, शिव, पितर, विश्वेदेवा, चन्द्र, अग्नि, अश्विनीकुमार और सूर्य ।
मतान्तर में प्रथम बीस संवत्सरों के स्वामी ब्रह्मा, इसके आगे बीस संवत्सगे के स्वामी विष्णु और इससे आगे वाले बीस संवत्सरों के स्वामी रुद्र शिव हैं।
द्वादशोऽध्यायः
अथातः सम्प्रवक्ष्यामि गर्भान् सर्वान् सुखावहान् ।
भिक्षकाणां' विशेषेण परदत्तोपजीविनाम ॥1॥ अब सभी प्राणियों को सुख देने वाले मेघ के गर्भधारण का वर्णन करता हूँ। विशेष रूप से इस निमित्त का फल दूसरों के द्वारा दिये गए भोजन को ग्रहण करने वाले शिक्षकों के लिए प्रतिपादित करता हूँ। तात्पर्य यह है कि उक्त निमित्त द्वारा वर्षा और फसल की जानकारी सम्यक् प्रकार से प्राप्त की जाती है। जिस देश में मुभिक्ष नहीं, उस देश में त्यागी, मुनियों का निवास करना कठिन है।
1. शिक्षाचरणा 1. A. I