Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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त्रयोदशोऽध्यायः
अथातः सम्प्रवक्ष्यामि यात्रां 'मुख्यां जयावहाम् । निर्ग्रन्थदर्शनं तथ्यं पार्थिवानां जयैषिणाम् ॥1॥
अब निर्ग्रन्थ आचार्यों के द्वारा प्रतिपादित एवं राजाओं को विजय और सुख देने वाली यात्रा का वर्णन करता हूँ !!! |
आस्तिकाय विनीताय श्रद्दधानाय धीमते ।
कृतज्ञाय सुभक्ताय यात्रा सिद्ध्यति श्रीमते ||2||
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आस्तिक - लोक परलोक, धर्म, कर्म, पुण्य, पाए पर आस्था रखने वाले, विनीत, श्रद्धालु, बुद्धिमान्, कृतज्ञ भक्त और श्रीमान् की यात्रा सफल होती है || 2 ||
अहंकृतं नृपं क्रूरं नास्तिकं पिशुनं शिशुम् । कृतघ्नं चपलं भीरुं श्रीर्जहात्यबुधं शठम् ॥3॥
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अहंकारी, क्रूर, नास्तिक, चुगलखोर, बालक, कृतघ्नी चपल, डरपोक और शठ नृप की यात्रा असफल होती है यात्रा में सफलता रूपी लक्ष्मी की प्राप्ति उपर्युक्त लक्षण विशिष्ट व्यक्ति को नहीं होती ।13।।
वृद्धान् साधून् समागम्य देवज्ञांश्च विपश्चितान् । ततो यात्राविधिकुर्यान् "नृपस्तान् पूज्य बुद्धिमान् ॥4॥
वृद्ध, साधु, दैवज्ञ – ज्योतिषी, विद्वान् का यथाविधि सम्मान कर बुद्धिमान् राजा को यात्रा करनी चाहिए || 4 ||
राज्ञा बहुश्रुतेनापि प्रष्टव्या ज्ञाननिश्चिताः । अहंकारं परित्यज्य तेभ्यो गृह्णीत निश्चयम् ॥5॥
अनेक शास्त्रों के ज्ञाता नृपति को भी अहंकार का त्याग कर निमित्तज्ञ से यात्रा का मुहूर्त ग्रहण करना चाहिए- ज्योतिषी से यात्रा का मुहूर्त एवं यात्रा के शकुनों का विचार कर ही यात्रा करनी चाहिए ||5||
ग्रहनक्षत्र तिथयो मुहूर्त करणं स्वराः ।
लक्षणं व्यंजनोत्पातं निमित्तं साधुमंगलम् ॥16॥
ग्रह, नक्षत्र, करण, तिथि, मुहुर्त, स्वर, लक्षण, व्यंजन, उत्पात, राष्धुमंगल आदि निमित्तों का विचार यात्राकाल में करना आवश्यक है ||
1. वामत्रसुखावहम् मुए 2 निव्यदर्शि तथा पाकियानां निर्माणाम्। 3. नुपस्तं मु० 14 । 5. उत्पाना मु !
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