Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहुसंहिता
ग्यस्माद्देवासुरे युद्धे निमित्तं दैवतैरपि।
कृतं प्रमाणं तस्माद्वै विविध दैवतं मतम् ।।7।। देवासुर संग्राम में देवताओं ने भी निमित्तों का विचार किया था, अत: राजाओ को सर्वदा निश्चयपूर्वका निमित्तों की पूजा करनी चाहिए--निमित्तों के शुभा-शुभ के अनुसार यात्रा करनी चाहिए ॥7
हस्त्यश्वरथपादातं बलं खलु चतुर्विधम् ।।
निमित्ते तु तथा ज्ञेयं यत्र तत्र शुभाऽशुभम् ॥8॥ हाथी, घोड़ा, रय और पैदल इस प्रकार चार तरह की चतुरंग सेना होती है । यात्रा कालीन निमित्तों के अनुसार उक्त प्रकार की सेना का शुभाशुभत्व अवगत करना चाहिए ।।8।।
शनैश्चरगता एव हीयन्ते हस्तिनो यदा।
अहोरात्रान्यमाक्रोद्यु: तत्प्रधानवधस्मृतः ॥9॥ यदि कोई राजा ससैन्य शनिश्चर को यात्रा करे तो हाथियों का विनाश होता है। अहर्निश यमराज का प्रकोप रहता है तथा प्रधान सेना नायक का वध होता है ॥9॥
यावच्छायाकृतिरवहीयन्ते वाजिनो यदा।
विगनस्का विगलय: तत्प्रधानवधः स्मृतः ।।10॥ यदि घोड़ों की छाया, आकृति और हिनहिनाने की ध्वनि-आवाज हीयमान हो तथा वे अन्यमनस्या और अस्त-व्यस्त चलते हों तो सेनापति का वध होता है ॥100
'मेघशंखस्वरामास्तु हेमरत्नविभूषिताः ।
भछायाहीना: प्रकुर्वन्ति तत्प्रधानवधस्तथा ॥11॥ यदि स्वर्ण आभूषणों से युक्त धोड़े मेत्र के समान आकृति और शंख ध्वनि के समान शब्द करते हुए छायाहीन दिखलाई पड़ें तो प्रधान सेनापति के वध की । सूचना देते हैं । ॥
I. पूर्व च पाशात निमिता गगनैरपि। गाई पूजनीयाश्च निमित्ताः सततं नमः ।।71 2. . मु.। 3ामद : भु। 4 यथा मु०। 5. बधलया मुः। 6. धानमय वाया।. सम्बना भाव [.! 8. छायापहीणा कुवैलि पु०। 9. सदा मु०।