Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहुसंहिता
हिंस्रो त्रिवर्ण: पिंगो वा नीरोमा 'छिद्रजितः ।
रक्तश्मथ : पिगनेत्रो गौरस्ताम्रः पुरोहितः ॥20॥ शुभ लक्षणों में युक्त, राजा के हित कार्य में सलग्न, राजा के द्वारा प्रतिपादित योजनाओं को टित करने वाला, समता भाव स्थापित करने वाला और निमित्तों का ज्ञाता नगिनिक होता है।
छावनी-मैन्य-शिबिर बनाने में निपुण, शुद्ध-संचालक और समयज्ञ स्थपति राजा होता है।
शरीरमास्त्र, निदानशास्त्र, शल्यवर्म-- ऑपरेशन, सूचीकर्म-इन्जेक्शन, मळ, ज्वर आदि यो में प्रयोण और चिकित्सा कार्य में दक्ष वैद्य को ही राजा द्वारा गाया बाल में वैद्य निर्वाचित किया जाना वाहिए।
ज्ञानी, अल्प मापण कारोवाना अर्थात् मितभाषी, बुद्धिमान, सांसारिक आकांक्षाओं मे रहित. यश की कामना रखने वाला, गुणवान्, मानोन्मान प्रभायुक्त
सगान नाद वाला, स्निग्ध और गम्भीर स्वर-कोमल और स्निग्ध स्वर वाला, श्रेष्ठ नि बाला, बुद्धिमान्, गृप्ट शरीर वाला, सुन्दर वर्ण वाला, सुन्दर आकृति बाला, सुन्दर वचन वाला, बलवान्, विद्वान्, अक्रोधी -शान्त चित्त, जितेन्द्रिय, पवित्र, त्रिवर्ण --दिज, हिमक, दिगवणं, लोभरहित, छिद्र--चेचक के दाग रहित, लाल मंझ, पिंगल नेत्र, गौरवर्ण, ताभ्र-कांचन देह पुरोहित होता है ।। 15-2011
नित्योद्विग्नो नाहते युक्त: प्राज्ञः सदाहितः।
एवमेतान् यथोद्दिष्टान् सत्कर्मषु च योजयेत् ॥21॥ नित्य ही चिन्तित, राजा के हित कार्य में संलग्न, बुद्धिमान, सर्वदा हित चाहने वाला पुरोहित नैगित होता है । राजा को चाहिए कि वहपूर्वोक्त गुण वाले *मित्त, वैद्य और पुरोहित नो ही कार्य में लगाये ।।21।।
इतरेतरयोगेन न सिद्धयन्ति कदाचन ।
*अशान्तो शान्तकारो यो शान्तिपुष्टिशरीरिणाम् ॥22॥ इतरेतर योग-उपर्युक्त लक्षणों से रहित व्यक्तियों को कार्य में लगा देने पर मंग्राम सम्बन्धी यात्रा सफल नहीं होती । म ही व्यक्ति को नियुक्त करना साहिए, जो अशान्त को शान्त नार सके और प्रजा में शान्ति और पुष्टि- समद्धि स्थापित कर सके ॥22॥
___E. fitoपगत् म । 2 नगीन गया:: म॥ । 3. भागः पाकरण: शान्तःपुण्याभिचाणिग म. ।