Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 1
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहुसंहिता
यथान्ध: पथिको भ्रष्ट: पथि विलश्यत्यनायकः ।
अनैमित्तस्तथा राजा नष्टे श्रेयसि क्लिश्यति ॥28॥ जिस प्रकार अन्धा गस्तागीर ले जाने वाले के ना रहने से च्युत हो जाने से कष्ट उठाता है उसी प्रकार नैमित्तिक के बिना राजा भी कल्याण के नष्ट होने से कष्ट उठाता है।12811
यथा तमसि चक्षुष्मान्न रूपं साधु पश्यति ।
अनैमित्तस्तथा राजा न श्रेयः साधु सास्यति ॥29॥ जिस प्रकार नेत्र वाला व्यक्ति भी अन्धकार में अच्छी तरह रूप को नहीं देख सकता है, उसी प्रकार नैमित्तिक से हीन राजा भी अच्छी तरह कल्याण को नहीं । प्राप्त कर सकता है ।।29॥
यथा वको रथो गन्ता चित्रं 'यति यथा च्युतम् ।
अनैमित्तस्तथा राजा न साधु'फलमीहते ।।300 जिग प्रकार वक्र—टेढ़े-मेढ़े रथ द्वारा मार्ग पर चलने वाला व्यक्ति मार्ग से । च्युत हो जाता है और अभीष्ट स्थान पर नहीं पहुंच पाता; उसी प्रकार नैमित्तिक से रहित राजा भी कल्याणमार्ग नहीं प्राप्त कर पाता है ।। 3011
चतुरंगान्वितो युद्धं कुलालो वतिनं यथा।
अविनष्ट न गृह्णाति जितं सूत्रतन्तुना ।।3111 जिस प्रकार कुम्हार बर्तन बनाते समय मृतिका, चाक, दण्ड आदि उपकरणों के रहने पर भी, वर्तन निकालने वाले धागे के बिना बर्तन बनाने का कार्य सम्यक् प्रकार नहीं कर सकता है, उसी प्रकार चतुरंग सेना से सहित होने पर भी राजा नैमित्तिक के बिना सफलता प्राप्त नहीं कर सकता है ।।31॥
चतुरंगबलोपेतस्तथा राजा न शक्नुयात् ।
अविनष्टफलं भोक्तुं नैमित्तेन विजित: ।।321 चतुरंग गेना से युक्त होने पर भी राजा नैमित्तिक से रहित होने पर युद्ध के समग्रफन्न प्राप्त नहीं कर सकता है ।। 3211
तस्माद्राजा निमित्तझं अष्टांगकुशलं वरम् ।
विभ्याल प्रथमं प्रीत्याऽभ्यर्थयेत् सर्वसिद्धये ।।33॥ अतएव राजा गभी प्रकार की सिद्धि प्राप्त करने के अष्टांग निमित्त के ज्ञाता, J.. . । चन्दा मु. । 3. सेम:- म ।